■अपनी बात : अपनों से : •रमेश शर्मा
●कोरोना काल : हमारे इर्द-गिर्द फ़ैली ख़ुशी औऱ दर्द की कहानी
-रमेश शर्मा
[ रायगढ़-छत्तीसगढ़ ]
मदर्स डे पर लगभग सभी लोग अपनी मां से जुड़ी स्मृतियां और उसके फोटोग्राफ साझा करते हैं। जिनकी माएं जीवित होती हैं उन्हें ऐसा करते हुए बहुत सुखद अनुभव होता है। जाहिर सी बात है जो अधेड़ उम्र के लोग हैं उनमें से ज्यादातर की माएं जीवित नहीं होती हैं पर अपनी स्मृतियां साझा करते हुए वे भी बहुत खुश होते हैं कि हमने भी अपने जीवन के सबसे सुंदर पलों को याद किया। मां शब्द ही ऐसा शब्द है जो हमें जीवन के रस में डुबो देता है। जो लोग अपनी मां के साथ जीवन में एक लंबी उम्र बिताते हैं वे बहुत खुशकिस्मत लोग होते हैं। मां का साथ एक प्रकार से जीवन को भरपूर तरीके से जीने की तरह है। कहा जाए तो यह ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार भी है । छोटे बच्चों से लेकर किशोर उम्र के बच्चों का जीवन तो मां की छाया तले ही व्यतीत होता है। वे अपनी उम्र से जुड़ी जीवन की सारी खुशी अपनी मां के साथ साझा करते रहते हैं। इस साझेपन में जो आनंद है उस आनंद की कल्पना सहज ही की जा सकती है।
कभी कल्पना कीजिए कि मदर्स डे जैसे इन दिवसों में जबकि मां को बहुत शिद्दत से याद किया जाता है, उन बच्चों पर क्या बीतती होगी जिनकी माएं उनके जीवन से असमय दूर चली जाती हैं, या जिनके जीवन से उनकी मांओं को असमय छीन लिया जाता है। ऐसे बच्चों के दर्द भरे एहसासात को यूं ही नहीं समझा जा सकता जब तक कि हम उनके साथ रहकर , संवाद करके उन्हें जानने या समझने की कोशिश ना करें।
कोरोना वायरस जैसे महामारी ने हाल ही में ना जाने कितने बच्चों को उनकी मांओं से अलग किया है। कई कई बच्चों की माताएं असमय काल के गाल में समा गई हैं। एक ऐसे ही बच्ची के दर्द भरे अनुभव से आज मुझे गुजरना पड़ा । बहुत से स्कूली बच्चे ऑनलाइन क्लास के चलते हमारे व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़े हुए हैं। इन्हीं बच्चों में से आज पूजा नाम की एक बच्ची ने भीतर से मुझे रुला दिया । उसका व्हाट्सएप स्टेटस देख कर मन बहुत द्रवित हो गया। जीवन की दुख भरी कहानियां जो बिल्कुल हमारे आसपास होती हैं, ऐसी कहानियों के भीतर उतरकर जीवन के संघर्ष को एक नए सिरे से देखने समझने का नजरिया हमें मिलता है। उस बच्ची की उम्र यही कोई 15 साल के आसपास अभी है। विगत सत्र में कक्षा नवमी में वह मेरी छात्रा रही है। उसने अपनी मां को मदर्स डे पर आज बहुत शिद्दत से याद किया था जो लगभग दस दिन पहले कोरोना संक्रमण के कारण चल बसी थी। उसकी मां रायगढ़ शहर में वार्ड पार्षद थी । जनसंपर्क के दौरान संक्रमित होकर बीमार हो गई थी और फिर देखते देखते ऑक्सीजन लेवल कम हो जाने के कारण हॉस्पिटल में उनकी मौत हो गई थी । मुझे इतना ध्यान नहीं था कि उनकी बच्ची मेरी छात्रा है, पर अचानक जब बच्ची का व्हाट्सएप स्टेटस देखा तो मुझे एकदम झटका सा लगा । बच्ची पर मुझे बहुत प्यार आया। मैंने उसके साथ कुछ देर तक काउंसलिंग करते हुए बात भी की । उसे आखिर क्या कह सकता था, बस ढाढस बंधाते हुए मैंने इतना भर कहा कि बेटा धीरज रखना, आगे जो भी होगा अच्छा ही होगा, मां की छाया तुम पर हमेशा रहेगी। यद्यपि मां के बिना जीवन में आगे का जो रास्ता है बहुत कठिन होता है, यह जानते हुए भी हमें किसी बच्चे को सांत्वना देनी ही होती है। शायद हमारी सांत्वना ही आगे जाकर उसके भीतर हिम्मत जगाने का कारण बन सके । इसके पीछे एक उम्मीद भर है, क्योंकि इसका कोई दूसरा विकल्प भी हमारे पास नहीं है, ना ही मां की कमी को किसी बच्चे के जीवन में कभी पूरा किया जा सकता है। उस बच्ची ने बहुत सुंदर जवाब दिया कि सर अब मुझे पिताजी को देखकर ही जीवन में आगे बढ़ना है। यद्यपि ऐसा जवाब देते हुए उसके भीतर दर्द, पीड़ा तकलीफ का जो ज्वार भाटा उत्पन्न हुआ होगा उसे मैं भीतर तक महसूस करता रहा। फिर भी मुझे भीतर से खुशी मिली कि उस बच्ची के आहत मन को कुछ देर सहला सका।
ऐसी कहानियां इस महामारी काल में हम सबके आसपास जन्म ले रही हैं जिनमें बहुत से बच्चे आहत हो रहे हैं। उन कहानियों के बच्चों तक पहुंचना भी आज हम सबका, समाज का दायित्व है।
[ कवि व लेखक रमेश शर्मा,राज्यपाल शिक्षक सम्मान से सम्मानित प्राध्यापक हैं. ]
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