■ग़ज़ल : ■अशोक कुमार ‘नीरद’.
3 years ago
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‘नीरद’ एक झूठी आस भी नहीं बँधेगी क्या
दिल तरस गया है इस सवाल के जवाब को.
-अशोक कुमार ‘नीरद’
[ मुंबई-महाराष्ट्र ]
जुगनूँ आइना दिखाने निकले माहताब को
बाँधने चले कपोत वक़्त के उक़ाब को
फिर वही अभाव की कथा दबाव की कथा
ज़िंदगी पढ़ेंगे कितना हम तेरी किताब को
खाद है न नीर है, न धूप है न वायु है
एक क्या अनेक ही तनाव हैं गुलाब को
कर्णधार क्राँति का है किस क़दर सड़ा-गला
रूढ़ियों के कैसे-कैसे रोग हैं जनाब को
अब लिखे तो कौन ज्योति की इबारतें लिखे
चाँद को गहन लगा गहन है आफ़ताब को
हो गया सफल जो उसको पूजता समाज है
एक क्या है सौ गुनाह माफ़ कामयाब को
‘नीरद’ एक झूठी आस भी नहीं बँधेगी क्या
दिल तरस गया है इस सवाल के जवाब को
●अशोक कुमार ‘नीरद’ संपर्क-
●99302 50921
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