■कविता आसपास : ■डॉ. शिवसेन जैन ‘संघर्ष’.
●थाली की अस्मिता
-डॉ. शिवसेन जैन ‘संघर्ष’
[ शहडोल-मध्यप्रदेश ]
असंख्य थालियां मेरे सपनों में आई
आकर के मुझे चौकाई
उन्हें ऐक साथ देख कर
मेरा सिर चकराया
मै बिस्तर से नीचे गिरने ही वाला था
कि सभी ने मिलकर के मुझे
सहारा देकर अपने
पास में बैठाया
मेंनें पूछा मेरे पास क्यों आई हो
वो भी पितृ मोक्ष अमावस्या की
रात्रि
मेरा प्रश्न सुन कर सब के
चेहरे उदास हो गये व
अनजाने ही बहुत कुछ कह गये
सभी थालियां
समवेत स्वरों में मुझ से बोली
साहस हो कविराज
तो अपनी कलम उठाओ
व देश में लुटती हुई
मेरी अस्मिता को बचाओ
ऐक तुम ही हो जिस की
खरी खरी न्यायालय से लेकर
प्रधान सेवक भी सुन लेते
अन्यथा आजकल
बच्चे भी अपने बाप की
सुनते कहाँ है ?
भूल चुक से सुन भी लें तो
गुनते कहाँ है ?
मै आदम काल से लेकर आजतक अपना धर्म
निभाती आई हूँ
लेकिन तुम सब अपनी अपनी
मर्यादाओं को तोड़ रहे हो
व सड़क से लेकर संसद तक
मेरी ही कलाई को मरोड़ रहे हो
जब कि सृष्टि के उदगम् से लेकर
आजतक का मेरा अपना
गौरवशाली इतिहास है
व मेरे अस्तित्व से ही सच पूछो तो
मानवीय संस्कृति का इस धरती
पर हुआ विकास है ।
पत्ल ढोना कलश कटोरी
लोटा ग्लास चम्मच चमचा
सब मेरे ही परिवार के अंश है
मेरी यह विविधता ही
धर धर की शोभा बढा़ रही है
फिर भी मेरी इज्ज़त
इज्जतदारों द्वारा ही
उतारी जा रही है ।
मेरा अप्रतिम सौंदर्य सृष्टि के
कण कण में बिखरा पड़ा है
फिर भी कुछ नमकहरामों ने
मेरे गाल पर ही तमाचा जड़ा है
अपने देश के प्रधान सेवक को ही
देख लो
करोना को तो पीट नहीं सकते थे
मुझे ही धर धर में पिटवा दिया ।
अब ऐक जया जी है
जिन्हें संसद के छेद तो
दिखाई नहीं देते
मेरे भीतर के छेद आम आदमी
को दिखा रही है
विपक्ष से वाहवाही मिले न मिले
लेकिन अपनों से वाहवाही
अवश्य ही पा रही है
किस की थाली में किस की
खिचड़ी है ये तो छोटे छोटे
बच्चे भी समझ जाते है
लेकिन आजकल देश के कर्णधार
मुझे छोटे बच्चों से ज्यादा
कमजोर नजर आते है
यह सच है कि जहाँ चार
बर्तन होते है वो खनकते ही है
लेकिन उन बर्तनों को
खनखाता कौन है
इस विषय पर सारी संसद ही
मौन है
कंगना की तू पर
तू तू का जुनून है ।
इन बातों पर देश न्यायाधीश के
न्यायाधीश स्वंय से तो
कोई संज्ञान लेंगें नहीं
क्योंकि वो भी जिस की कटोरी
चम्मच से खाते है
उन्हें क्यों आईना दिखायेंगे
दफ्तर से धर उन्हें भी लौटना
होता है
धर के ही लोटे ग्लास से भला
कैसे लड़ पायेंगें ?
अभी ऐक बेचारे
प्रशांत भूषण जी ने नादानी में
सर्वोच्च न्यायालय को
आईना दिखाने का ऐक
सराहनीय कार्य कर डाला था
परिणाम क्या हुआ ?
ये सारा देश जानता है
फिर मै क्यूँ न जानूंगी ये सच्चाई
मै भी तो उन के किचन में
रहती हूँ मेरे भाई
आजकल देश की हर धड़कन पर
कान न होते हुये भी कान
दिये रहती हूँ
दूसरों का इल्जाम सदियों से
अपने आप पर ही सहती हूँ
अब ज्यादा बर्दाश्त मै भी
नहीं कर पाऊँगी ।
जो मेरे पर ऊँगलियाँ उठायेगा
उन पर मै भी उठाऊँगी ।
शिष्टाचार निभाते निभाते
आजकल मै भी थक गई हूँ
हर गली मुहल्ले में
जहाँ देखो वहाँ भृष्टाचार के
हाथों बिक गई हूँ ।
अब ये तुम्हारा दायित्व है कवि
अपना मोर्चा संभालो
थाली लोटा कटोरी चम्मच की
लुटती हुई अस्मिता को
इस देश के चमचों से
बचा लो ।
इस देश के चमचों से
बचा लो ।
●कवि संपर्क-
●88395 80891
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