■कविता आसपास : ■गोविन्द पाल
●कद और पद
-गोविन्द पाल
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
हम तुम्हें साथ चलने को कहा
तुम बहाना बनाते रहे
नखरे दिखाते रहे,
मिलकर इतिहास रचने को कहा
तुम मेरी हंसी उड़ाते रहे,
जीवन में कदमताल मिलाने को कहा
तुम मेरे हर कदमों पर
गड्ढे खोदते रहे,
साथ मिलकर सपने देखने को कहा
तुम मेरे हर सपनो में
खलल डालते रहे,
तुमसे दिलों की दूरियां मिटाने को कहा
तो तुमने मेरे दिल के टुकड़े टुकड़े कर दिये
मैं हर मोड़ पर तुम्हारा इंतजार करता रहा
पर तुमने मुझे हरबार समय के हवाले कर दिए
तुम्हें आदर सत्कार व सम्मान देना चाहा
तुम मुझे शक की नजरों से देखते हुए
अविश्वास के कटघरे में खड़ा कर दिये,
मैं जब – जब तुम्हारी ओर दोस्ती का हाथ बढाना चाहा
तुम अपने कद और पद के अहंकार में डूबे रहे
और मुझको अपने बराबरी रखने में कतराते रहे
पर मैं नादान पद कद के वैभव को समझ नहीं पाया
क्योंकि मेरे अंदर का नासमझ बच्चा
सबको एक समान समझता रहा
लाख समझाने के बावजूद
हर बार नादानी कर बैठता है
और मेरे स्वाभिमान को लहूलुहान
कर जाता है,
इस बार मैंने सोचा
क्यों न गुरुदेव रवीन्द्र नाथ के बताये
पथ का अनुसरण करूं-
“गर तेरे बुलावे पर कोई न आये
तो फिर चल अकेला, चल अकेला
चल अकेला रे..
शायद गुरुदेव को पता था कि
हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ
अकेले चलते जाओगे
तो कारवां बनता जायेगा।
[ ●हिंदी और बांग्ला के सुप्रसिद्ध कवि गोविन्द पाल की नवीनतम रचना ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के पाठकों के लिए प्रकाशित है. ●कविता ‘कद और पद’ के प्रति अपनी राय से अवश्य अवगत कराएं. ●कवि संपर्क-75871 68903. -संपादक ]
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