■75 भारत अमृत महोत्सव पर विशेष : ■तारकनाथ चौधुरी.
●हिन्दुस्तां हमारा.
-तारकनाथ चौधुरी.
[ चरोदा-भिलाई, छत्तीसगढ़ ]
निज विकृतियों से जूझ रहा है,
हिंदुस्ताँ हमारा,
सारे जहाँँ से अच्छा
हिंदुस्ताँ हमारा..
इंद्रधनुषी संस्कृति को हम
इंद्रजाल कहने लगे,
संभवत: इसलिए अपने अब
राम-रहीम भी लड़ने लगे
दंगों का व्यूह अब रचता है
मंदिर-मस्जि़द-गुरुद्वारा।
निज विकृतियों से जूझ रहा है
हिंदुस्ताँ हमारा….
अग्रदूत शांति का था जो
राष्ट्र द्वन्द्व में उलझ रहा
आसाम,मीजो-जम्मू की तरह,
हर प्रांत का अंतस् सुलग रहा,
हो सावधान!वरना इक दिन
जल जायेगा देश हमारा।
निज विकृतियों से जूझ रहा है,
हिंदुस्ताँ हमारा…..
विज्ञान-कला की प्रगति में
निःशंक गगन हमने चूमा,
पर प्रेम-पुष्प खिलाने को
हर आँगन-भाग रहा सूना
हुए ध्वस्त, स्नेह-संबंध सकल
खंडित-खंडित भाईचारा।
निज विकृतियों से जूझ रहा है,
हिंदुस्ताँ हमारा….
भूले तुलसी के दोहे सब,
बिसरे इक़बाल के नग़्में भी
नहींं याद शहीदों की गाथा,
उनके वादे और क़समें भी
अब लें संकल्प कि हो अर्पित,
मातृभूमि पे जीवन सारा।
निज विकृतियों से जूझ रहा है,
हिंदुस्ताँ हमारा।
सारे जहाँ से अच्छा
हिंदुस्ताँ हमारा…!
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