■75 भारत महोत्सव पर विशेष : ■महेश राजा.
●दो लघुकथाएं.
-महेश राजा.
[ महासमुंद-छत्तीसगढ़ ]
■तिरंगा.
तिरंगा ले लो दादा जी।दो और तीन रुपये में।
वे चौंके पलट कर देखा,एक आठ वर्षीय बालक सामान्य,साफ सुथरे कपड़ों में ढ़ेर सारे छोटे-बड़े तिरंगे लिये आवाज लगा रहा था।
उनका नित्य नियम सुबह उठकर नहा-धो कर वे चौराहे वाले हनुमानजी मंदिर आते दर्शन करते फिर सामने बने बाल उद्धान की सैर करते।नन्हें नन्हें बच्चों को अपने माता -पिता या पालक के साथ हँसते-खेलते देखना अच्छा लगता।उन्हें अपने पोते की याद आ जाती।
पास पहुंच कर पूछा-पढ़ते लिखते नहीं हो?
उतर मिला- जी चौथी कक्षा में हूं।बीमारी की वजह से शालाऐं बंद है।
उन्होंने पूछना चाहा कि इस तरह से झंड़े बेच रहे हो? इसका अपमान नहीं होगा?
वह क्या समझा पता नहीं पर,स्वगत बुदबुदाया,दीदी ने बताया है कि लोग तो देश को बेच रहे है,मैं तो पेट की खातिर….।
पता चला,पिता चल बसे।माँ सिलाई बुनाई का कार्य करती है।इन दिनों बीमार है।पडोस की दीदी ने यह दिये है।
उन्हों ने पचास रूपये के तिरंगे लिये।बालक खुश हो गया।वे आगे बढ़े,बगीचे में ढ़ेर सारे बच्चे आये हुए थे,उन सबको एक एक तिरंगा देकर समझाया,यह हमारे देश की शान है।इसे गिरने मत देना।बच्चों ने हामी भरी।वे खुश हुए।
दूर से देखा तो वह बालक उनकी तरफ स्नेह भरी नजरों से देख रहा था।उन्होंने हाथ उठा कर उसे विदाई दी।
■तुम कब आज़ाद होओगे.
आलीशान इमारत।चारों तरफ खूब सजावट हो रही थी।नौकर बिरजू सफाई कार्य में व्यस्त था।पास ही उसका छोटा लडका ननकू खड़ा होकर यह सब देख रहा था।
कुछ देर बाद उसने बिरजू का हाथ पकड कर पूछा-“,बाबू ,यह सब क्या हो रहा है,कोई शादी ब्याह होने वाला है क्या?”
बिरजू ने दिवार से जाला हटाते हुए ,हंँसते हुए कहा-“नहीं रे,कल 15 अगस्त है न।नेताजी से मिलने बड़े -बड़े लोग आयेंगे।खूब खुशियाँ मनायी जायेगी,मिठाइयांँ बाँटी जायेगी।”
ननकू बाल सुलभ मुद्रा मे बोला, -” आज के दिन क्या हुआ था ,बाबू जो कि मिठाई बांँटी जायेगी?
बिरजू ने अपनी समझ से 15अगस्त और 26 जनवरी को गड्ड मड्ड करते हुए बताया-“,बेटा इसी दिन तो हमारा देश
आजाद हुआ था।अंँग्रेज भारत छोड़ कर भागे थे।
-“बाबू यह आजादी क्या होती है?
ननकू की पीली पड़ी आंँखों में उत्सुकता थी।
-आजादी के माने स्वतंँत्रता, किसी का किसी पर दबाव नहीं।सबको अपने ढ़ंग से जीने का पूरा हक होता है”
-बिरजू बोला।
नन्हें ननकू की आंँखो में बापू का पसीने से भीगा तरबतर शरीर तैर आया।
सुबह पांँच बजे से रात को दस बजे तक उसने अपने बाबू को बैल की तरह काम करते हुए ही देखा था।एक मिनट का भी चैन नहीं।उस पर नेताजी की डांटफटकार अलग। मालकिन की गालियाँ।और खाने मे बची खुची झूठन।
उसके मुंँह से एकाएक निकल पडा-“तो बाबू ,तुम कब आजाद होओगे?”
बिरजू चुप रहा। वह असहाय भाव से अपना काम करता रहा।उसके पास बेटे के
इस सवाल का जवाब नहीं था।
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