■डॉ. आरती की चार ग़ज़लें.
ग़ज़लें.
-डॉ. आरती कुमारी.
[ मुज्जफरपुर-बिहार ]
♀ 1
कभी सरहद पे जाएंगे तो फिर जयकार लिक्खेंगे
तिरंगे को सलामी दे उसे घर -बार लिक्खेंगे
जिगर से हम सिपाही हैं क़लम हथियार है अपना
जला दें सच की लौ दिल में वही अशआर लिक्खेंगे
वतन जब भी बुलायेगा चले आएंगे दौड़े हम
मरेंगे देश की ख़ातिर यही हर बार लिक्खेंगे
तुम्हारी याद की पलटन हमारे दिल की बैरक में
कभी जो आई तो ख़त में तुम्हें बस प्यार लिक्खेंगे
जो ऊँची चोटियों पे और सहरा में खड़े रहते
वतन के उन सपूतों का अजब किरदार लिक्खेंगे
♀ 2
घेरा हमको मौत ने कैसे कटें दिन
जी रहे डर -डर के हम साँसों को गिन- गिन
आप घर से दूर नगरी में फँसे हो
कैसे मुश्किल काटूँ बोलो आपके बिन
शहर की चालों से वाक़िफ़ क्यूँ नहीं तुम
ले रहीं हैं जान ये कितनों की पल-छिन
दिल तड़प कर जा लगे सीने से तेरे
हाँ अभी ये भी नहीं है बात मुमकिन
ये सियासत थालियाँ बजवा रही है
किस तरह जाएँगे मज़दूरों के दुर्दिन
आँखें नम हैं और साँसे तेज़ मेरी
मेरे हृदय में चुभे यूँ याद का पिन
प्रेम के मंदिर में दीपों को जलाये
राह अपने देव की देखे पुजारिन
♀ 3
है तुझी से बहार का मौसम
मेरे दिल के क़रार का मौसम
एक मुद्दत से मुन्तिज़र है दिल
जाने कब आये प्यार का मौसम
मेरी ख़ुशियों के बादशाह बता
उम्र भर है? ख़ुमार का मौसम
रात बेचैन सी कोई रुत है
और दिन इंतिज़ार का मौसम
आरती तुमसे ज़िंदगी रौशन
तुमसे ही ऐतबार का मौसम
♀ 4
ज़रूरत है समझने की
नहीं है बात कहने की
अंधेरी रात में घर से
न कर ग़लती निकलने की
बिछाकर कांच कहता है
इजाज़त है टहलने की
सड़क बिजली दवा पानी
हुई है बात सपने की
लगा दी आग तो उसने
है देरी सिर्फ़ जलने की
दुआ अब दीजिए साहब
चमन में फूल खिलने की
●डॉ. आरती कुमारी
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