■गीत : ■अशोक कुमार ‘नीरद’.
3 years ago
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●होने को अनहोनी होती है.
●छांव धूप के बीजे बोती है.
-अशोक कुमार ‘नीरद’.
[ मुंबई-महाराष्ट्र ]
होने को अनहोनी होती है!
छाँव धूप के बीजे बोती है।
पग-पग परअचरज ही अचरज है।
विघटन का ही सीना नौ गज है।
किरण तिमिर का रोना रोती है।
छाँव धूप के बीजे बोती है।
सर्जक कोई यश कोई लूटे।
मुरझे-मुरझे हैं श्रम के बूटे।
ख़ुद का भान सरलता खोती है।
छाँव धूप के बीजे बोती है।
रोज़ बदलते रहते हैं परिचय।
सबकी थामे वल्गाएँ अभिनय।
आदर्शों को लगी पनोती है।
छाँव धूप के बीजे बोती है।
●कवि संपर्क-
●99302 50921
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