■कविता आसपास. ■जी. एल.चित्रकूटी.
[ जी.एल.चित्रकूटी उत्तरप्रदेश से हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’के लिए इनकी पहली रचना प्रकाशित है,अपनी राय से अवगत कराएं.]
♀ वे गीत
♀ जी.एल.चित्रकूटी
[ उत्तरप्रदेश ]
कुछ गीत अच्छे होते हैं
सुन्दर
सुरीले
और मधुर भी!
कृष्ण की बांसुरी सी
धुन होती है उनकी
राधा के प्रेम सी पवित्रता
उन गीतों में मीरा की एकनिष्ठ प्रणय-साधना
कबीर के ढाई आखर
मांझी का प्यार
और शरद चंद्र की कहानी होती है
बोधा के इश्क
और घनानंद की प्रेम-पीर के
वर्तमान दस्तावेज होते हैं वे गीत
पर गाये नहीं जाते!
होठों के भीतर केवल गुनगुनाए जाते हैं वे गीत!
समाज, संस्कृति और सिद्धांतों के दबाव में
भीतर ही दबे रहते हैं
होठों से बाहर नहीं आ पाते।
वे गीत समय-समय पर निकलते हैं
उदासी, उसांसें और आंसुओं का रूप लेकर
किंतु संकुचित!
किसी से कहते नहीं कुछ
एक समग्र अधूरेपन के अभाव में
घोर चुप्पी और घुटन में दिन बिताते हैं वे गीत
पर जब सब्र की सीमा पार हो जाती है
तो अपनी विशेष सूत्र-भाषा में
जाकर नेपथ्य में
बहुत कुछ कहते हैं वे गीत
किंतु किसी का साथ नहीं पाते
पड़ जाते हैं अकेले!
और जब पड़ जाते हैं अकेले
तो भीतर ही भीतर दम घुटने लगता है उनका
बीमारियां घेर लेती हैं
आधे पागल से हो जाते हैं वे गीत
और एक दिन ऐसा भी आता है
जब अपने ही भीतर घुट-घुटकर मर जाते हैं वे गीत!
क्यों नहीं गाए जाते वे गीत?
आज के कवियों गीतकारों से पूछता हूं मैं
क्यों अधूरे रह जाते हैं वे हजारों-लाखों गीत
छोड़ दिए जाते हैं नि:शब्द?
क्या कुछ कमी रह जाती है उनमें
किन्ही सांगीतिक तत्वों की?
यदि नहीं!
तो क्यों ?
सुंदर, सुरीले और मधुर
संगीत से भरपूर वे गीत
सिसक रहे हैं
आज भी दीवारों के पीछे?
कब मिलेंगे सुंदर सटीक शब्द उन गीतों को ?
कब होगा न्याय उनके साथ
वे लिखे जाएंगे
गाये जाएंगे
सामान्यतया, बेझिझक
जैसे गाए जाते हैं सभी गीत
वैसे कब गाये जाएंगे वे गीत?
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