■ग़ज़ल: ■श्यामलाल साहू.
3 years ago
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[ श्यामलाल साहू इस्पात कर्मी एवं ‘सेंटर ऑफ स्टील वर्कर्स यूनियन [ऐक्टू] भिलाई के महासचिव के साथ-साथ कविह्रदय भी हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए कामरेड श्यामलाल साहू की पहली रचना हमारे पाठकों के लिए प्रस्तुत है. कैसी लगी लिखें.
– संपादक ]
♀ प्याले में छलकता शराब है आदमी.
♀ श्यामलाल साहू.
ख़ाश दावत में कबाब है आदमी
प्याले में छलकता शराब है आदमी
चेहरे पे चेहरे बदलता है हर पल
चेहरे पे लगा हुआ नक़ाब है आदमी
ज़गह तो मिली है मगर पीकदान में
जैसे मुँह से निकला लुआब है आदमी
बोझ से झुककर इस क़दर दुहरा हुआ
ज़मीं पे चलता कोई मेहराब है आदमी
कचरे के ढेर में लग रहा है ज़ंग़
ज्यों कोई फिंका हुआ असबाब है आदमी
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