■कविता आसपास : ■डॉ. शिल्पी समद्दार ‘सदाबहार’.
♀ एक तुलसी आंगन में.
बेटी का सम्मान भी हर घर में माता तुलसी की ही तरह हो। जिस तरह तुलसी बिना आंगन सुना है उसी तरह बेटी बिना आंगन सुना है ।
बेटी बचाओ बेटी बचाओ
मत छेड़ो नारी शक्ति को। धरती माँ करे पुकार,
मुझ से ही है वसुंधरा।
हर कली की सदा बहार।
बेटी बचाओ बेटी बचाओ
तुलसी का एक पेड
लगाओ । आंगन को खूब महकाओ । तुलसी और बेटी की तुलना न करो, दोनों का ही करो सम्मान ।
हर घर मे सुख बेटी की पाओ।
दुख में छाव का पाओगे सुक का अनुभव।
बेटी बचाओ बेटी बचाओ।
अगर छेड़ोगे बेटी हमारी
जीवन नरक बन जायेगी रेगिस्तान ।
हरियाली को तुम तरसोगे।
बेटी बचाओ बेटी बचाओ
आसमान में घनघोर धूँआ
कितना प्रदूषण चारों ओर।
बिन पेड़ों के सांस रुक जाए । पेड़ लगाओ पेड़
बचाओ।
बेटी बिना सुना आंगन
सुकून ना मीले। जीवन में।
भूखे नंगे भटकोगे कल
अपनी करनी का फल।
भुगतोगे।
सारे जग अभी ना चेते।
जीवन तबाह जब कर लेगे।
हर आंगन मे एक तुलसी
ओर हर घर मे एक बेटी
स्वस्थ पवन खुशहाली जीवन।
बेटी बचाओ बेटी बचाओ
सम्बंध, अनुठान वृक्ष वर्षा का ।
लगाओ वृक्ष अनमोल जीवन।
प्रकृति का है अद्भुत खेल,पेड़ों से ही है वर्षा का देख मेल।
एक तुलसी प्रकृति की देन दे रहा है सब संदेश,
पेड़ बचाओ बेटी बचाओ
सदा मुस्कुराओ बहारो का शान।
[ डॉ. शिल्पी समद्दार ‘सदाबहार’,अंतरराष्ट्रीय बंगाली समाज़ की फाउंडर हैं. समाजसेवी डॉ. शिल्पी जी दुर्ग छत्तीसगढ़ से हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में डॉ. शिल्पी जी की पहली रचना प्रस्तुत है, कैसी लगी लिखें. -संपादक. कवियित्री सम्पर्क- 94255 62712 ]
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