■कविता आसपास. ■अमृता मिश्रा.
3 years ago
140
0
♀ अदृश्य हैं वे बेड़ियाँ.
♀ अमृता मिश्रा.
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
आधुनिकता की एक अंधी दौड़
और आडम्बर भरा है समाज
सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में
अंध श्रद्धा झलकाते लोग
क्योंकि अदृश्य हैं वे बेड़ियाँ
जिनमें बँधी रहती है सोच।
एक स्त्री, सोलह शृंगार में सुसज्जित
मन में उग आती शंकाओं के साथ
रखती, ससुराल में महावर रचे पाँव
आते नहीं अधरों पर गीत कभी
क्योंकि अदृश्य हैं वे बेड़ियाँ
छनकती चूड़ियों के बीच।
नहीं पलते आँखों में सपने फिर,
नहीं उभरता मन में कोई रंग
घूँघट के पीछे जीती उम्मीदें
नहीं भर सकती उड़ान भींगे पंखों से !
क्योंकि अदृश्य हैं वे बेड़ियाँ
जिसने कुछ भी खिलने न दिया।
●●● ●●●