■इस माह की कवियित्री. ■डॉ. अंजना श्रीवास्तव
【 अल्मोड़ा-उत्तरांचल में 22 जुलाई को जन्मीं डॉ. अंजना श्रीवास्तव एम ए,एम फिल, पीएचडी [समाजशास्त्र], एमएससी[मूल्य शिक्षा एवं आध्यात्म], विशारद तबला हैं.
28 वर्ष शैक्षणिक कार्य से सेवानिवृत्त प्रभारी निर्देशिका, सामाजिक विज्ञान अनुसंधान केंद्र, भिलाई में थीं.
डॉ. अंजना श्रीवास्तव की अब तक प्रकाशित पुस्तकें :
●चूड़ी प्रथा ●भारतीय समाज में लैंगिक भेदभाव ●महिला शिक्षा एवं कानून ●जेण्डर स्कूल और समाज
डॉ. अंजना श्रीवास्तव ने कई विशिष्ट कार्य किये हैं, प्रमुख हैं- ●महिला सशक्तिकरण एवं महिला उत्थान. ●परिवार परामर्शदात्री.
डॉ. अंजना श्रीवास्तव कई पुरस्कारों से सम्मानित हुई हैं-
●राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी के हाथों 1978 में सम्मानित.
●मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के द्वारा 2010 में सम्मानित.
●पुलिस विभाग द्वारा राष्ट्रीय पर्व पर 6 बार सम्मानित.
●अंधत्व निवारण, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, जिला पुलिस विभाग, जन सुनवाई फाउंडेशन और नवभारत, हरिभूमि समाचार पत्रों द्वारा समय-समय पर सम्मानित.
●महिला सशक्तिकरण, महिला उत्थान और परिवार परामर्शदात्री के तौर पर डॉ.अंजना श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ से भिलाई इस्पात नगरी में बड़ा नाम है. डॉ. अंजना श्रीवास्तव 1995 से लगातार परिवार को टूटने के लिए परामर्श दे रही हैं. अंजना जी पुलिस में टूटते परिवार और साक्षरता जैसे सामाजिक कार्य में अब तक करीब 10 हज़ार से ज्यादा परामर्श दे चुकी है.
●परिवार परामर्शदात्री डॉ. अंजना श्रीवास्तव वर्तमान में भिलाई में निवासरत हैं.
●डॉ. अंजना श्रीवास्तव ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ ग्रुप समूह के संचालक मंडल की सदस्य डायरेक्टर हैं.
●इस माह की कवयित्री में इनकी तीन कविताएं हमारे पाठकों एवं वीवर्स के लिए प्रस्तुत है, कैसी लगी लिखें.
– संपादक 】
●मुझे शांति नहीं चाहिए.
मुझे शांति नहीं चाहिए….।
मुझे शीतल हवा की सरसराहट चाहिए.
मुझे पक्षियों की चहचाहट चाहिए.
सुबह मंदिर के घंटों से ईश्वरीय संकेत चाहिए.
मस्जिद से अजान का सुकूने फरमान चाहिए.
गिरजा से प्रभु अंतर्मन की सुखद अनुभूति चाहिए.
गुरुद्वारे से अरदास शब्दवाणी के आदेश चाहिए.
मुझे शांति नहीं चाहिए….।
छोटे बच्चों की चंचल,
खिलखिलाहट चाहिए.
यौवन की रहस्यमयी
मुस्कुराहटें चाहिए.
अंधेरों की झिलमिलाते
सुख सितारे चाहिए.
अनुभवी के अनुभवज्ञान
के इशारे चाहिए.
नेक-नीयत इंसान का
मधुर-मिलन चाहिए.
ध्वनि-प्रतिध्वनि की रसीली
सुगबुगाहट चाहिए.
मुझे शांति नहीं चाहिए….।
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●जीवन को जीवन की जरूरत.
नकारात्मक सोच से सकारात्मक सोच
अंधेरे से रोशनी का सुख
नाउम्मीद से उम्मीद की खुशी
भोगा है कभी,
सोचा है कभी.
एक किनारे से दूसरे किनारे का एहसास
आसान नहीं मंज़िल उस पार की
हर रात के बाद सुबह जरूर आयेगी.
फिर क्यों डरते हो अंधेरे से
ढूंढो चिंगारी आशा की किरण दिखेगी
दुखों में ही तो सुख का अंकुर है.
भय को भगाओ कदम तो बढ़ाओ
हार कर जीतने वाले बाजीगर हो.
उठो जागो,बढ़ो विजेता,
तुम ही तो हो.
सार्थकता इसी में है,
यथार्थ भी यही है.
जीवन को जीवन की जरूरत है.
उठो जागो,बढ़ो मंज़िल,
अवश्य मिलेगी.
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●मैं, हम,स्व का टकराव.
हां मैंने कुछ गलतियां की है.
हां मैंने गलतियां की है.
मैंने, मैं मैं मैं मैं कभी नहीं किया
हमने, हम हम हम हम का राग अलापा
मैं मेरा कभी बन न पाया
हम हमको,
कभी अपना बना न पाया
अब……………….अब
मैंने ‘मैं’ को ‘स्व’ का आकार दे दिया है.
आत्मा का आत्मा से मिलान
सम्मान दे दिया है.
नया चिंतन, नया स्वभाव पा लिया है.
स्व जिंदगी है,
स्व आकाश छूने की तमन्ना है
स्वतंत्र उड़ाने,
पंख लगाकर उड़ने का
साहस जुटा लिया.
स्व की सीढ़ी बनाकर
कदम बढ़ा लिया है.
जीवन में एक सूत्र
सदैव अपना लिया है.
स्व चिंतन, स्व आकलन,
स्व विश्लेषण, स्व परिवर्तन
लाकर स्वमान जिंदगी जीते जाओ
स्वार्थी मैं मैं,
का तिरस्कार,
बहिष्कार करते जाओ.
मैं, हम,स्व का टकराव
स्वयं समझ जाओगे.
नये तरन्नुम से नया फलसफा,
शुरू कर पाओगे.
ला-जवाब,
जिंदगी का नया
सिलसिला बना पाओगे.
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