■तीन बाल कविताएं : डॉ. बलदाऊ राम साहू.
♀ मेरा बचपन
कितना अच्छा है बचपन।
लगता है जैसे उपवन।
शोर – शराबे हों उनके
हँसता है तब घर-आँगन।
रूठें या फिर जिद्द करें
फिर भी लगते मनमोहन।
कान्हा – सा उत्पात करें
लेकिन कोरा है तो मन।
हर बार मेरा मन कहता
लौट-लौट मेरा बचपन।
♀ करो न वादा
दादा अभी कहाँ से आए
गरम जलेबी क्यों न लाए?
बड़ी देर से क्यों तुम आते
लेकिन हाथ में कुछ न लाते?
रोज बगीचा क्यों जाते हो
जाकर वहाँ क्या पाते हो?
दादा हमसे करो न वादा
कभी न लेंगे तुमसे ज्यादा.
कल सुबह जब तुम जाओगे
साथ हमें भी ले जाओगे.
आते से तुम गरम जलेबी
और समोसा खिलवाओगे.
♀ चिड़ियाघर
चलो चलें जी अब चिड़ियाघर
मन में क्यों हम पाले हैं डर.
चीता, भालू, गैंडा बंदर
रहते हैं पिंजरे के अंदर.
सदा दूर से देखें भाई
इसी में है अपनी भलाई.
उन्हें कभी न खाना डालें
कहते हैं इनके रखवाले.
उनसे हरदम रहें हम दूर
कभी न करें उन्हें मजबूर.
फेंके कभी न उन पर पत्थर
रहें सदा हम उनसे डर कर.
देखो गेंडा खड़ा हुआ है
फौजी-सा वह अड़ा हुआ है.
देखो सुंदर नीली गैया
कितनी वह भोली है भैया.
फुर्तीले इस हिरण को देखो
चंचलता उनसे तुम सीखो.
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