■इस माह की कवयित्री : ■केवरा यदु ‘मीरा’.
【 ●पोखरा राजिम की केवरा यदु ‘मीरा’,गीत ग़ज़ल भजन छंद दोहा पिरामिड विधा सायली में सिद्धहस्त हैं. ●देश के कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित. ●विगत 40 वर्षों से सतत लेखन. ●राजिम कुंभ में प्रतिवर्ष कविता पाठ. ●सम्मान- ‘सूरज कुंवर देवी सम्मान [2015]’, विगत 9 वर्षों से ‘राजिम कुंभ सम्मान’, सुंदरलाल शर्मा सम्मान’, मि तानिन सम्मेलन में ‘भूर्ण हत्या गीत सम्मान’, ‘त्रिवेणी साहित्य सम्मान’. ●इसके अलावा 100 से अधिक ऑन लाईन ‘कवि सम्मेलन सम्मान’ एवं कोटा कवि चौपाल से सम्मान. ●केवरा यदु ‘मीरा’ की रचनायें इस माह ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए हमारे पाठकों एवं वीवर्स के लिए प्रकाशित कर रहे हैं. ●अपनी राय से अवगत कराएं -संपादक 】
दोहा छंद : हमसफर.
मन मंदिर में हो बसे, हमसफर हमराज ।
तुम हो मेरी जिन्दगी, हो मेरे सरताज ।।
सुनलो मेरे हमसफ़र, तुमसे है श्रृंगार ।
बिंदिया चमके माथ में, चूड़ी की खनकार ।।
नदी किनारे बैठ कर, खिली चाँदनी रात ।
नैनों से नैना कहे, आज जिया की बात ।।
रहना मेरे हमसफ़र, ले हाथों में हाथ ।
आओ हम वादा करें, रहें युगों तक साथ ।।
साँसों की हर तार में, लिखा हमसफर नाम ।
मैं तेरी मीरा पिया, तू है मेरा श्याम ।।
हमसफ़र पाया तुझे, प्यारा तेरा प्यार ।
और नहीं कुछ चाहिए, ओ मेरे दिलदार ।।
दोहा : गठरी.
गठरी नित तू बाँधता, पाई पाई जोड़ ।
इक दिन ऐसा आयगा, जाना सब कुछ छोड़ ।
गठरी लादे पाप की,करके अत्याचार ।
दौलत गठरी बाँध ले,पुन्य कमा दो चार।।
गठरी से कुछ दान कर,जो बेबस लाचार।
रोटी दे मजबूर को,करले पर उपकार ।।
गठरी साथ न आय अब, दे गठरी को खोल।
दीन दुखी को बाँट दे, वाणी मीठा बोल।।
गठरी माँ की छीन कर,किया बहुत ही पाप।
मुख से कुछ कहती नहीं,लगे आह की शाप।।
दोहा छंद : त्याग.
त्याग महल को चल दिये,वन को श्री रघुनाथ ।
रोते नर नारी अवध,हम तो हुए अनाथ।।
त्याग मूर्ति सीता चली,अपने पिय के साथ।
अर्ध अंगिनी बन रही,थाम राम का हाथ ।।
चरण पादुका शीश धर,भरत रहे चितलाय।
त्याग अवध सुख भोग को,चौदह वर्ष बिताय।।
त्याग उर्मिला का सुनो,करी नींद परित्याग ।
खड़ी द्वार चौदह बरस,प्रियतम पद अनुराग ।।
त्याग समर्पण साथ ले,चलती हरपल नार।
ममता आँचल में लिये,चला रही संसार ।।
रोटी सबको दे खिला,पी लेती माँ नीर।
भूख नहीं है आज कह,सह जाती माँ पीर ।।
रखती है नौ माह तक, तुझे रक्त से सींच।
जन्मा जब तू लाल कह,रखती ह्रद से भींच।।
त्याग तपस्या के बिना, जीवन है बेकार।
भूखे को रोटी खिला, चलो बाँट लें प्यार।।