■कविता आसपास. ■गोविंद पाल.
♀ गीत.
♀ गोविंद पाल.
【 भिलाई, जिला-दुर्ग,छत्तीसगढ़. 】
दीप से दीप जले तो समझो दिवाली है
दिल से दिल मिले तो समझो दिवाली है
एक छत हो एक आकाश तो समझो दिवाली है
नफरतों की दीवार ढह जाये तो समझो दिवाली है
मन में उठने लगे आस तो समझो दिवाली है
भूखा न रहे कोई अब इस देश में
मधुर मुस्कान हो आज परिवेश में
चेहरे के पीछे का चेहरा पहचानो
रावण जो छुपा है राम के ही वेश में
मौसम हो मधुमास तो समझो दिवाली है
तम को दूर करे प्रकाश तो समझो दिवाली है
आंखों में सपना हो और दिल में उमंग
रंगों से रंग मिलकर हो जाये एक रंग
रुक जाये अब ये खून की होली
वादियों में थम जाये नफरतों की जंग
टूटे न बिश्वास तो मझोले दिवाली है
पूरी हो सबकी आस तो समझो दिवाली है
इंसानियत से बढ़कर नहीं है कोई धर्म
उन्हें भी समझ आये इस बात का मर्म
हट जायें दुनिया से सारी सरहदें
आतंक की आंखों में आ जाये शर्म
आम हो जाये खास
तो समझो दिवाली है
मोहब्बत का मंत्र हो सबके पास
तो समझो दिवाली है।
■कवि संपर्क-
■75871 68903
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