■बचपन आसपास. ■डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’.
3 years ago
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♀ अनुकृति
● निश्छल ,कोमल ,अभिवृत्ति
ईश्वर की अनुपम कृति
हाथों में बेलून लिए
खेल रही है अनुकृति
● श्वेत वस्त्र में अनुकृति
लगती है सोनपरी
हँसना मत ,रो देगी
आँखें हैं अभी भरी
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♀ सिर पे टोपी गले में मफलर
सिर मे टोपी गले में मफलर
होठों पर मुस्कान लिए
खड़ी है मिश्का बाहर जाने
बाइसिकल में सामान लिए
आँखों में है वो ही शरारत
और चेहरे पर भोलापन
नयी नयी जिज्ञासा हृदय में
है बचपन का अल्हड़पन
मन का न करने दे कोई तो
गुस्सा उसको आता है
धूम धाम मर्जी़ से मचाना
हरदम घर में भाता है
अपने दादा और नाना से
रोज़ रात बतियाती है
दादी ,नानी ,बुआ -फूफा को
कविता नयी सुनाती है
पापा -मम्मी की है लाड़ली
दिनभर ख़ूब नचाती है
गोद में मम्मी की थककर फिर
चुपके से सो जाती है
•••
■डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
[ जमनीपाली, जिला-कोरबा,छत्तीसगढ़. संपर्क- 7974850694 ]
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