■साहित्य आसपास. ■गीता विश्वकर्मा ‘नेह’.
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♀ ग़ज़ल
♀ गीता विश्वकर्मा ‘नेह’
[ बालको नगर,कोरबा,छत्तीसगढ़ ]
लोग अक्सर वो ज़माने से ख़फा होते हैं,
जिनके अरमान अधूरे से सदा होते हैं ।
ओढ़कर शक्ल पे मुस्कान फिरे वो हरदम,
मुश्किलों से ही घिरे जिनकी वफ़ा होते हैं ।
जीतने का है हुनर हार तुम्हें जो दिखता,
इस तरह प्यार में अपनों की दुआ होते हैं ।
रूह तक इश्क समाया हो सनम का जिसमें,
क्या ज़माने के सितम से वो फ़ना होते हैं ।
माज़रा क्या है जलन ‘नेह’ से रखने वालों,
उनके इज़हार में तो सिर्फ अना होते हैं ।
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