■कविता आसपास. ■पंखुरी सिन्हा.
■पिता की स्मृति में.
ये पहला नया साल आपके बिना बाबूजी
जिसका मुझे बिल्कुल स्वागत करना नहीं आता
यों तो हर बार कोहरे में ही लिपटा आता है
नया साल
लेकिन इस किस्म की दृष्टि हीनता का यह पहला साल है
बाबूजी, आपके बिना यह पहला नया साल है
और जबकि ग्लोबल वार्मिंग के हाहाकार के बीच
धूप, गरम सी ही धूप
उग जाती है दोपहर होते होते
आ जाती है आपके कमरे के बरामदे में
और आप नहीं आते मुझसे कहने
कि आ जाओ
मैं अपने आप
धूप से नहाई आपके पलँग की पाटी पर
धर देती हूँ अपने लिखने का कागज़
और स्वीकारती हूँ धीरे धीरे
कि अब कोई नहीं पकड़ेगा
मेरी ठुड्ढी को वैसे
जैसे अपनी तीन उँगलियों में आप धर लिया करते थे
और मुस्कुराया करते थे
जैसे लोग छोटे बच्चे को देखकर मुस्कुराया करते हैं
हमेशा के लिए बदल गया है मेरे लिए
ठुड्ढी को पकड़ने और मुस्कुराने का मतलब
लेकिन कितना कुछ हो रहा है
नए साल की पूर्व संध्या पर
नोट बदल गए हैं
और बस इतने से ही
देश में भूचाल आ गया है
कतारों के उलाहनों के बीच
मौत तक की खबरें आ गयीं हैं
और क्यों ये पूछना वाजिब नहीं माना जा रहा
और कहा जा रहा है कि
सदमे और चकमे में जनता रही केवल
और कि १७ बड़ी कंपनियों को पता था पहले से
और कि तरकीबें निकालीं उन्होंने
काले को सफ़ेद करने की
यह काले पैसे पर ही
एक रेड थी बाबूजी
भ्रष्टाचार से पीड़ित एक देश में
कैसे आता है नया साल
विपक्ष के हंगामे के बीच
जो एक बेरोज़गार अधेड़ सा
संचित कर रहा है
योजना के कार्यान्वन की खामियों के आंकड़े
जबकि नए नोटों की छिपाई हुई गड्डी मिल रही है
वहीँ से कुछ दूरी पर
जहाँ लोग कह रहे हैं
डेली वेज वालों को
सचमुच राशन का पैसा नहीं है
गुत्थी ये कि बस नोट बदल देने से
कैसे ठप्प हो जा सकता है
किसी का व्यापार?
लेकिन कुछ कौतूहल तो ज़रूर जाकर टिक गया है
विपक्षी नौजवान के सवाल में
कि आखिर कितना काला पैसा
निकाला आपने प्रधान मंत्री जी?
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