■कविता आसपास : घनश्याम शर्मा.
【 घनश्याम शर्मा केंद्रीय विद्यालय गोपेश्वर, जिला-चमोली,उत्तराखंड हिंदी के शिक्षक हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए घनश्याम शर्मा की पहली रचना प्रकाशित है. -सम्पादक 】
♀ तेरा ही आसरा है माँ
तेरा ही आसरा है माँ, तू ही मेरा सहारा है।
हुआ दर्द दिल में जब भी माँ, तुझे ही तो पुकारा है।
अजब-सा दिन ये कैसा है, ग़जब ये रात ढाती है।
बड़ा भारी है पत्थर माँ, मेरी कमज़ोर छाती है।
नहीं कुछ भी लगे अच्छा, बस तेरा साथ प्यारा है।
तेरा ही आसरा है माँ, तू ही मेरा सहारा है।।
अभी मासूम बच्चा हूँ, समझ न मुझ को तू सयाना।
छोड़ मासूमियत को माँ, पड़ा बड़ा है बन जाना।
बड़ा भोला बड़ा नादाँ, माँ ये तेरा दुलारा है।
तेरा ही आसरा है माँ, तू ही मेरा सहारा है ।।
हवाएँ सर्द मौसम की, चुभे जैसे नग्न तन को।
वैसा ही हाल मेरा है, याद छलनी करे मन को।
मगर न प्रण को तोड़ेंगे, यही तो ‘प्रण’ हमारा है।
तेरा ही आसरा है माँ, तू ही मेरा सहारा है ।।
नहीं आँखों में आँसू की, कोई भी बूंद आएगी।
धूल दुनिया की ना कोई, आँखों को मूंद पाएगी।
चित्र ना गंदा होगा वो, जो आँखों में उतारा है।
तेरा ही आसरा है माँ, तू ही मेरा सहारा है ।।
मेरा मन तेरे चरणों में रहे मुझ को यही वर दे।
जहाँ पर वास हो तेरा, माँ मुझ को तो वही घर दे।
मेरी नज़रों में मेरी माँ, बस तेरा ही नज़ारा है।
मेरा जीवन भी सँवरे माँ, तूने सबका सँवारा है।
तेरा ही आसरा है माँ, तू ही मेरा सहारा है ।।
♀ त्याग पत्र
मैं त्याग-पत्र दे रहा हूँ नौकरी से’
आज के समय की सबसे भयानक पंक्ति है ये,
इसे विवरणों की तरह
सूचनाओं की तरह
समाचारों की तरह
या
कर्मछोड़ों की तरह
न लिया जाकर
न लिखा जाकर
लिया जाना चाहिए इसे
किसी व्यक्ति ही नहीं परिवार की भी
अंतिम आह की तरह …
इसे लिया जाना चाहिए
जीने हेतु अंतिम पुकार की तरह
इसे लिया जाना चाहिए
सबसे आख़िरी संघर्ष की तरह
इसे लिया जाना चाहिए
अपने आत्म-निरीक्षण की तरह
इसे एक कम की तरह न लिया जाकर
इसे लिया जाना चाहिए
एक अच्छे, कर्मठ, सहयोगी , समर्पित
की शाश्वत अनुपस्थिति की तरह …
■कवि संपर्क-
■82786 77890
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