■5 फरवरी बसंत पंचमी पर ‘बसंत’ पर एक जनवादी रचना- गणेश कछवाहा.
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♀ बसंत
♀ गणेश कछवाहा
[ रायपुर छत्तीसगढ़ ]
भव्य
इमारत के
वातानुकूल कमरे के
शो केस में
कागज की बनी
गुलाब की
पंखुड़ियों को देखकर
तुम
यह मत समझो
कि
बसंत आ गया है।।।
कूकती कोयल,
इतराते आम्रबौर,
सुगंध बिखेरते पुष्प,
सम्मोहित करती
पुरवैया,
महज
प्रकृति का श्रृंगार
ही नहीं है
और न ही
पंचसितारा
संस्कृति में डूबकर
कमर मटकाने
जाम झलकाने का
घिनौना
और
वैश्याना बिम्ब है,
बल्कि वह तो
सुकोमल भावनाओं और
संवेदनाओं को अंकुरित करती
जीवन के
असीम आनंदित झणों के
अनुपम श्रृंगार का
प्रतिबिंब है।।
टेसू का
अंगारों सा दहकना
केवल
प्रकृति का सौन्दर्य ही नहीं
बल्कि
दैत्याना और बहिशाना
हरकतों के खिलाफ
एक जंग का
ऐलान भी है
और
जगमगाती
नई सुबह की
लालिमा की दस्तक है।।
■कवि संपर्क-
■94255 72284