■कविता आसपास : समीर उपाध्याय.
♀ रूह मिलन की ऋतु : वसंत.
♀ समीर उपाध्याय.
[ चोटीला, जिला-सुरेन्द्र नगर,गुजरात ]
वासंती वैभव की छटा है निराली।
चारों दिशाओं में बहार है आई।
मुरझाए चेहरों पर मुस्कान है छाई।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
ऋतुओं में वसंत ऋतु है मस्तानी।
प्रेमियों को यह ऋतु है बड़ी प्यारी।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
दोनों प्रहर की समा है रूहानी।
प्रकृति खिली आज है मनोहारी।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
धरती ने ओढ़ी चुनरी है हरियाली।
पेड़ और पौधों ने ली है अंगड़ाई।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
अरुणोदय की लालिमा है बड़ी न्यारी।
पंछियों की आवाजें लगती है सुहानी।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
खिल उठी वृक्षों की हर एक है डाली।
रंग-बिरंगी फूलों की कलियां हैं मुस्काई।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
कृष्ण संग राधा ने अखियां है मिलाई।
फूलों के झूले पर प्रणय-क्रिडा है रचाई।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
खुद को भूलकर राधा हुई है दीवानी।
“मैं कृष्ण हूं”यह बोल उठी है राधा-रानी।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
खुद को आज भूल गए है गिरधारी।
“मैं राधा हूं”यह बोल उठे हैं मुरारी।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
“कृष्ण-कृष्ण”बोलकर राधा हुई है कृष्णमयी।
“राधे-राधे”बोलकर कृष्ण हुए है राधामयी।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
दो तन एक प्राण हुए हैं पल माही।
आत्मा-परमात्मा की मिलन-घड़ी है आई।
वासंती वैभव की छटा है निराली।
आत्मानंद परमानंद की बेला है आई।
मुक्तानंद ब्रह्मानंद की बेला है आई।
■कवि संपर्क-
■92657 17398
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