■छतीसगढ़ी कविता : डॉ. बलदाऊ राम साहू.
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♀ बसंत आ गे
♀ डॉ. बलदाऊ राम साहू
[ दुर्ग,छत्तीसगढ़ ]
देखौ जी, रितु बसंत आ गे,
धरती के मन हरसागे।
आमा रूख मा बइठे-बइठे
कोयली राग सुनावत हे
लागथे बन के जीव ल जम्मो
घेरी-बेरी लुहावत हे।
परसा, सेमर जम्मो फूल गे
महुआ सबो गदरा गे।
देखौ जी, रितु बसंत आ गे,
नाचत हावै अरसी, सरसों
घुंघरू चना बजावे,
तिवरा, बटुरा दोनों मिल केय।
फुसुर-फुसुर गोठियावे।
किसम-किसम के गहना पहिरे
खेत-खार हरियागे।
देखौ जी, रितु बसंत आ गे,
करँय ठिठोली बुढ़ुवा मन
बुढ़िया गजब मुचमुचाये
चेलिक जँवरिहा अपने अपन
तान ददरिया गाये।
तन-मन मा उल्लास घुसरगे,
आँखी मा मया हमा गे ।
देखौ जी, रितु बसंत आ गे,
….
■बटुरा का अर्थ-मटर
■कवि संपर्क-
■94076 50458
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