■कवि और कविता : प्रकाश चन्द्र मण्डल.
[ ●बांग्ला एवं हिंदी के कवि प्रकाश चन्द्र मण्डल इस्पात नगरी भिलाई छत्तीसगढ़ से हैं. ●35 वर्षों से नाटकों से जुड़े हैं प्रकाश चन्द्र मण्डल. ●2 बांग्ला संग्रह ‘तुमि ऐले ताई’ और ‘एक फालि रोदूर’ और 1 हिंदी काव्य संग्रह ‘शब्दों की खोज में’ प्रकाशित हो चुकी है. ●बांग्ला साहित्यिक संस्था ‘बंगीय साहित्य संस्था’ और ‘मुक्तकंठ साहित्य समिति’ में अपने पद का निर्वहन करते हुए साहित्यिक सेवा कर रहे हैं. ●सामाज़िक संस्था ‘बंगीय क्रिष्टि परिषद’ से भी जुड़े हैं. ●’विश्व बंग साहित्य एवं सांस्कृतिक सम्मलेन’ भिलाई छत्तीसगढ़ के भी पदाधिकारी हैं. ●देश के अलावा बांग्लादेश में भी सम्मानित हैं प्रकाश चन्द्र मण्डल.
-संपादक ]
♀ पवित्र पावनी छत्तीसगढ़
यह धरती है बड़े पावनी
यह सुरों, स्वरों और काव्य का है जननी
छत्तीसगढ़ की माटी में है शक्ति अपार
धान के कटोरा है जाने पुरा संसार,
खेल खिलाड़ियों से भरे पड़े हैं
नृत्य में दुनिया देखा देवदास बंजारे ने
हाकी में सिरमौर है सबा अंजुम,
क्रिकेट का सितारा है राजेश चौहान।
लक्ष्मण मस्तुरिया है आवाज की जादूगर
छत्तीसगढ़ की स्वर कोकिला ममता चंद्राकर।
पण्डवानी से गौरवान्वित है सारा संसार
तीजन बाई के सुर लहरी और तंबुरे की झंकार।
रितु वर्मा, झाड़ू राम देवांगन गौरव छत्तीसगढ़
मंदिरों में दर्शनीय पहाड़ी डोंगरगढ़,
मां बम्लेश्वरी बसते वहां पर्वत शिखर
श्रद्धालुओं आशीर्वाद लेते उनके दर्शन कर।
यहां के नद और यहां के नदी बहती है कल-कल
इस मिट्टी से उगते हैं खुशी के फूल और फल
मिट्टी की खुशबू यहां के उगते हैं फसलें अनेक
आम,जाम इमली,तेंदु, महुआ और हर्रा सारे
सुन्दर मधुमय यह धरती, छत्तीसगढ़ काव्य की जननी,
बाल्मीकि के मुख से प्रथम श्लोक से लिखा रामायणी।
लहराते फसलों के बीच किसान गाते ददरिया
तीज त्यौहारों में झुमकर नाचते,गाते भोले छत्तीसगढ़िया।
कवि, काव्य के रसधार से
खिल उठे काव्य की फसल
शीश झकाता हूं इस मिट्टी को
जीऊं तो इस मिट्टी में, मरूं तो इस मिट्टी में
प्रणाम मेरे माटी छत्तीसगढ़ को।।
♀ शांति की प्रतीक्षा में
शांति तुम वापस आओ
आकर देखो तुम्हारा मानव समाज
दुःख और कष्ट से हाहाकार कर रहा है
शांति तुम वापस आओ
तुम्हारे द्वारा निर्मित सुन्दर पृथ्वी
तुम्हारी प्रतीक्षा में
दुःख और कष्ट से मानव
तुम्हे वापस लाना चाहता है
शांति तुम वापस आओ।
स्वदेश लेकर लड़ाई, प्रदेश लेकर लड़ाई
पूरे विश्व में खून की नदियां बह रही है
शांति तुम वापस आओ!
शाम के गोधूली बेला में
सुस्ताते हुए-
मानव तुम्हारे स्निग्ध और शीतल
छाया पाने के लिए
तुम्हारी प्रतीक्षा में
शांति तुम वापस आओ।
♀ सुन्दर हूं मैं
सुन्दर हूं मैं परी हूं मैं
तितलियों सी उड़ती हूं मैं
रंग बिरंगी पर है मेरे
करती हूं अठखेलियां मैं
खुली आसमान के नीचे
विचरण करती हूं मैं
झरनों के साथ बहती हूं मैं
ऊंचे पर्वत श्रृंखला से टकराती हूं मैं
उनसे आगे बढ़ने की
कोशिश करती हूं मैं
ये जिंदगी मेरे लिए है
जीने की कोशिश करती हूं मैं
चाहे कितनी भी बाधा आये
ऊपर उठकर जिऊंगी मैं
सुनहरे सपने देखती हूं मैं
पर्वत लाघंने की कोशिश करती हूं मैं
एक दिन सपने सच करूंगी मैं
सबसे आगे रहूंगी मैं
क्योंकि मैं नारी हूं।
■कवि संपर्क-
■94255 75471
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