■अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस : 8 मार्च 2022 -शरद कोकास.
♀ अनकही
वह कहता था
वह सुनती थी
जारी था एक खेल
कहने सुनने का
खेल में थी दो पर्चियाँ
एक में लिखा था ‘कहो’
एक में लिखा था ‘सुनो’
अब यह नियति थी
या महज़ संयोग
उसके हाथ लगती रही
वही पर्ची
जिस पर लिखा था ‘सुनो’
वह सुनती रही
उसने सुने आदेश
उसने सुने उपदेश
बन्दिशें उसके लिए थीं
उसके लिए थीं वर्जनाएँ
वह जानती थी
कहना सुनना नहीं हैं
केवल हिंदी की क्रियाएं
राजा ने कहा ज़हर पियो
वह मीरा हो गई
ऋषि ने कहा पत्थर बनो
वह अहिल्या हो गई
प्रभु ने कहा घर से निकल जाओ
वह सीता हो गई
चिता से निकली चीख
किन्हीं कानों ने नहीं सुनी
वह सती हो गई
घुटती रही उसकी फरियाद
अटके रहे उसके शब्द
सिले रहे उसके होंठ
रुन्धा रहा उसका गला
उसके हाथ कभी नहीं लगी
वह पर्ची
जिस पर लिखा था – ‘कहो’
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♀ अनकही का गुजराती अनुवाद.
[ •मूल कविता-शरद कोकास
•गुजराती अनुवाद-मुकुंद कौशल ]
ए कहे तो अने ए साँभड़ती
चाली रही हती रमत
कहेवा अने साँभड़वा नी
रमत मा हती बे चबरकीओ
एक पर लख्युं हतुं -बोल
अने बीजी पर लख्युं हतुं साँभड़
कोण जाणें आ प्रारब्ध हतुं
के मात्र संजोग
तेना हाथे आवती रही एज चबरकी
जेमा लख्युं हतुं – साँभड़
ए साँभड़ती रही
एणें साँभड़ी आग्नाओ
एणें साँभड़याँ उपदेशो
निषिद्धिओ तेना माटे हती
वर्जनाओ – मर्यादाओ पण
तेना ज माटे हती
ए जाणती हती
के कहेवुं अने साँभड़वुं
भाषा नी क्रियाओ मात्र नथी
राणा ए कहयुं- जेर पी जा
ए मीरा थई गई
रूशी ए कहयुं- पाषाण थई जा
ए अहिल्या थई गई
प्रभु ए कहयुं- महेल मेली ने जता रहो
ए सीता थई गई
चिता थी उठती चीसो
कोईए न साँभड़ी
अने ए सती थई गई
मुंझाती रही तेनी फरियाद
घूँटाता रह्यां तेना शब्दो
सीवाएला रह्या तेना होठ
रुंधाएलुँ रह्युं तेनु गडूं
पण तेना हाथे
क्यारेय न लागी ए चबरकी
जेमा लख्युं हतुं – बोल
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■कवि संपर्क-
■88716 65060
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