■कविता : केवरा यदु ‘मीरा’.
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♀ फागुन के रंग
♀ केवरा यदु ‘मीरा’
[ राजिम,छत्तीसगढ़ ]
मेरे मन को भा गया, यह फागुन का रंग ।
मैं तो मतवाली हुयी,आज श्याम के संग ।।
मन मोहन मलते रहे,ले गुलाल औ रंग ।
झूम उठी मैं साँवरे, जैसे पी हो भंग।।
आकर मोहन डालते , नीला पीला रंग
बाँह पकड़ फिर ले गये,गिरधर अपने संग ।।
पिया बसे परदेश में, होली है बेरंग।
आजा अब ओ साजना, खेलूँ तेरे संग ।।
ब्रज की होली देखिये,अंबर उड़त अबीर।
इसी रंग में मिल गये,तुलसी मीर कबीर ।।
रंगों मे ही घोलिये, प्रीत भरे संवाद।
ऐसी होती खेलिये,रहे जन्म भर याद।।
होली में बस खेलिये, लेकर सूखे रंग ।
अरि को गले लगाइये, रह जायेंगे दंग।।
पानी मत बर्बाद कर,घोल घोल कर रंग ।
मल मल देख नहा रहा, पहले मचा हुडदंग।।
श्याम रंग में रंगती, चढ़े न दूजा रंग ।
मीरा “ऐसी बावरी, भाये मोहन संग।।
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