■कविता : डॉ. आशा सिंह सिकरवार [अहमदाबाद]
♀ कब होगा अंत
शिकारी रोजाना बदलता है अपनी जगह
निशदिन अनंत प्रलोभन देता है
सुनहरे सपने भर देता है
मछलियों की आँखों में
मछलियाँ फँस जाती हैं जाल में
चल देती हैं उनके साथ
समन्दर में नाव पर
दनदनाता है मछलियों के
खरीद -फरोश का व्यापार
जानता है शिकारी
देश में कहाँ-कहाँ पहुंचानी है
समन्दर पार
किन-किन देशों में
समन्दर में
दिन -रात रोती हैं मछलियाँ
कैद में आँसू पत्थर बन जाते हैं
षडयंत्र से बचने के लिए
उनकी आत्मा छटपटाती है
थक कर दम तोड़ देती है
उनकी कोशिशें
स्वीकार कर लेती हैं दुर्भाग्य
जिन्होंने मछलियों को
काट-काट खाया
अपनी विकृतियों के कोनों से
गर्भगृह को तोड़ा
निचोड़ कर रक्त
मृत्युशैया तक पहुँचाया
कौन लाएगा उन्हें कठघरे तक
मछलियाँ मारी जा रही हैं
कूड़ेदान में, नदियों में
चौराहे पर
नालियों और गटरों से
कहाँ-कहाँ नहीं हो रहे शव बरामद
वे पूछतीं हैं
कब होगा अंत
♀ निर्माण
मिट्ठी कुरेदी जा रही है
बीज रोपना है
कि हो रही है वह संवेदित ।
मिट्ठी जितनी बन जाएगी नरम
उतनी ज्यादा होगी उपजाऊ
होगी बीजों को सहुलियत
छन छन कर
जड़ों को मिलता रहेगा पानी ।
एक दिन
अंकुर फूट पड़ेगे
पत्ते, फूल और फल
सब परिवर्तित हो जाएंगें आशाओं में
निर्माण की प्रक्रिया में
बच्चें लिखेंगे
पेड़ पर निबंध
अनंत कालों तक
कि जड़े प्रेम से भर आएंगी
और फैल जाएँगी पाताल लोक तक
उन्हें काटना वहाँ से
असंभव – सा हो जाएगा ।
फिर उग आएंगे पृथ्वी पर
हरे-भरे जंगल
कि बच्चे लिखेंगे
पृथ्वी पर निबंध ।
[ ●डॉ. आशा सिंह सिकरवार अहमदाबाद गुजरात से हैं. ●शिक्षा-एम ए एम फिल हिंदी साहित्य,पीएचडी गुजरात यूनिवर्सिटी. ●प्रकाशित पुस्तकें- 1.समकालीन कविता के परिप्रेक्ष्य में चंद्रकांत देवताले की कविताएं. 2.उदय प्रकाश की कविता. 3.बारिश में भीगते बच्चे एवं आग कुछ नहीं बोलती. 4.उस औरत के बारे में.
●देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर कविता,ग़ज़ल,कहानी,लघुकथा, समीक्षा, लेख शोध-पत्र प्रकाशित. ●आकाशवाणी से भी रचनायें प्रसारित. ●डॉ. आशा जी कई सम्मान से सम्मानित हो चुकी हैं. ●लखनऊ उत्तरप्रदेश से प्रकाशित दैनिक ‘कंट्री ऑफ इंडिया’ की संपादक हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए पहली रचना.
-संपादक ]
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