■ 20 मार्च गौरेया दिवस पर विशेष : मिथिलेश रॉय [शहडोल मध्यप्रदेश].
♀ गौरेया
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प्यारी, मेरी प्यारी गौरैया,
झुंड की झुंड आती थी
तुम कभी घर,आँगन में
तुम्हारी चहचाहट से भरी होती
सुबह,दुपहरी, सांझ,
मां सूखने डालती अन्न तो
तैनात कर देती हमे सूखते अनाज
की रखवाली में,
खेतों में अनाज की बालियां
और बगीचों में पकते फलों
पर टूट पड़ती थी तुम सब
पूरे दलबल सहित एकसाथ,
किसान भगाते रहते उल्लास से भरे,
तुम्हारी महिमा के,
भाषा मे रचे गए कितने ही, किस्से,
लोकोक्ति, छंद, दोहे, मुहावरे, गीत
तुम्हें याद करते हुए ,
बचपन आ धमकता है, किसी
बहुरूपिये की तरह अजीब ,अजीब से
रूप धरे, बहने लगती है,
हवा मदमस्त,झूमती डाली-डाली,
नदी, घाट आसमान,
पहाड़, बादल ताल पोखर,
खेत खलिहान, एक एक तैर आते है
आंखों की सजल कोरों में,
गाँव, नगर, गली बाजार,
धूप, बारिश, गर्मी, जाड़ा,
दिन रात, तुम्हारी याद के सहारे
उतरते जाते है मन के अंतिम तल तक,
अब जब खेतों में अधिक उत्पादन के
लिए उपयोग में लाई जा रही है,
रासायनिक खाद,
उजाड़े जा रहे है बाग- बगीचे, जंगल,
पहाड़ तोड़े जा रहे है
शहर गाँव मे खड़े हो रहे
सीमेंट कंक्रीट के घरों के जंगल,
पेस्टीसाइड से खत्म हो रहे है।
तुम्हारे भोजनाहार, किट पतंगे
घटने लगी है, तुम्हारी संख्या,
इधर पिछले कई बर्षों से बनी हुई है।
तुम्हारी अनुपस्थिति, घर आँगन में ,
तुम्हारी याद में उदास रहता है आँगन
घर भी रहता है कुछ उखड़ा-उखड़ा
सुबह दुपहरी, सांझ सुनी हो चली है।
सूरज का उगना, सांझ के ढलने में,
अक्सर तुम्हारा न होना एक टीस से
भर देता है इन दिनों
प्यारी,मेरी प्यारी गौरैया,
तुम्हारे, यूँ गुम होते जाने पर,
“कविता”दुखों से भरी है।
इन दिनों ।
■कवि संपर्क-
■88898 57584
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