■ 21 मार्च विश्व कविता दिवस के उपलक्ष्य पर- विजय पंडा [छत्तीसगढ़].
♀ तब कविता लिखता हूँ.
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अराजकता समाज में बोलने लगे
कुकुरमुत्ते स्वर्णी पौधे को दबाने लगे
पालनहार कृषक सिर पर हाथ दे बैठने लगे
कर्मवीर युवा गुमराह होकर सड़क पर दौड़ने लगे
तब कविता लिखता हूँ।
गाँधी पथ अपमानित होने लगे
श्वान मनुज पर आघात कर भौंकने लगे
घास फूस महलों की छत बनने की दावा करने लगे
राम दधीचि का त्याग मुरझाने लगे
तब कविता लिखता हूँ।
किसान मजदूर शोषित होने लगे
चाणक्य के वचनों पर वितर्क होने लगे
शस्य वसुंधरा जब सूखने लगे
समाज में तम के रहनुमा जब सिरमौर बनने लगे
तब कविता लिखता हूँ।
अभिमन्यु के शौर्य पर प्रश्न लगे
शिवाजी राणा के वंशज सोने लगे
मानवता पर आग सुलगने लगे
जाती राष्ट्रवाद पर जब आग लगे
तब कविता लिखता हूँ।
देश शाँति पर जब नाग लगे फुंफकारने
बच्चा दूध रोटी की माँग लेकर लगे चिल्लाने
श्रवण कुमार को भूल बेटा वृद्धाश्रम ओर पग लगे बढ़ाने
जवान शहीद हो “जय – हिंद” गर्व से लगे चिल्लाने
तब कविता लिखता हूँ।
मेरी सँस्कृति विलोपित होने लगे
पश्चिमी सभ्यता आलोकित होने लगे
बेरोजगारी युवाओं के रुधिर पीने लगे
देश के जयचंद स्वदेश मे हुंकारने लगे
तब कविता लिखता हूँ।
■कवि संपर्क-
■98932 30736
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