■मातृव दिवस के अवसर पर माँ को समर्पित परमेश्वर वैष्णव की दो कविताएं.
♀ माँ के हाथों से बनी रोटियां
माँ
आवश्यकतानुसार
महीन चिकने आटे लेकर
ममता जल उसमें उढ़ेलकर
मथती गुथती गोल गोल लोई
अपनी सुकोल हथेलियों से
जैसे प्यार दुलार से सहला रही हो
अपने मासूम बच्चों का
गोल गोल चेहरा
माँ अपनी नई पीढ़ी लोई को
पहले समकालीन पीढ़े पर रख
कर्तव्य के बेलन से
कुशल कारीगर की तरह
गढ़ती रोटी का आकार
पृथ्वी सा गोलाकार
फिर
वक्त के गर्म तवे रख
हताशा की आंच से जलने से बचाने
संस्कार व संघर्ष के हल्के हल्के ताप पर
सेंकती गर्म गोल गोल रोटियां
प्रतिभा सम्पन्न फूलती रोटियां देख
माँ फूली न समाती
फूली फूली गोल गोल रोटियां
माँ को लगती
सम्पूर्ण उन्नत प्रगतिशील पृथ्वी
माँ के हाथो से बनी
रोटियों की तरह स्वादिष्ट
माँ की निगरानी में निर्मित
बच्चे होते सम्पूर्ण पृथ्वी में प्रतिष्ठित
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♀ माँ होने का अर्थ
माँ के आते ही
चूजे चहकने लगे
माँ जी माँ जी माँ जी
चूजों को मालूम है
भोजन के लिए
माँ की पीड़ा
माँ की व्यथा
आकाश से कहीं अधिक विस्तृत
सिंधु से कहीं अधिक गहरी
माँ की ममता की है अथाह गहराई
माँ जानती है
चूजे को पालना
मतलब
नई दृष्टि
नई सृष्टि
नई पृथ्वी को संवारना
चूजों को भी मालूम है
माँ का प्यार
सम्पूर्ण संसार
माँ नहीं होती
नहीं होती हमारी उड़ान
नहीं बचती हमारी जान
माँ नहीं होती
नहीं होती हमारी उत्पत्ति
नहीं चहचहाती हमारी पृथ्वी
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[ ●कवि परमेश्वर वैष्णव,’छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ छत्तीसगढ़’ के संगठन सचिव एवं ‘भिलाई-दुर्ग प्रगतिशील लेखक संघ’ के अध्यक्ष हैं. ●कवि संपर्क- 94255 57048. ]
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