■कविता आसपास : वीणा [ झुमरी तिलैया, झारखंड ]
3 years ago
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♀ मौन संवादों के बीच
मौन संवादों के बीच
सांझ के धुंधलके में
खिड़की से राह तकती स्त्री
निहारती है ससुराल की गलियाँ
और मन ही मन गुनती है
पिता के दफ्तर से आने का समय
कयास लगाती हैं
उनके चाय पीने का
डबडबा आती हैं आँखें
बचपन की देहरी को याद कर
मन फिर ठहर जाता है कुछ देर वहीं
हुक सी उठती है
कलेजे में
फुट पड़ती सिसकियों को
होंठ जकड़ रोक लेती है स्त्री
पिता के स्वाभिमान को
सीने में छुपा दौड़ पड़ती है
बस एक आवाज़ पर
स्त्री, तुम निचोड़ लेना
अपने मन का हर दुख
रात के गुमनाम अंधेरे में
क्यूंकि
एक जिंदगी समांतर सफर करती है
स्त्रियों के ब्याह के बाद…
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chhattisgarhaaspaas
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