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■ग़ज़ल : डॉ. बलदाऊ राम साहू.

3 years ago
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गिर-गिर कर तू उठता जा
आगे-आगे बढ़ता जा
-बलदाऊ राम साहू

गिर-गिर कर तू उठता जा,
आगे – आगे बढ़ता जा।

असफलता जीवन कुंजी,
कोशिश बस तू करता जा।

जीवन एक पहेली है,
हल कर और बूझता जा।

रोक न पाएगा कोई ,
बाधाओं से लड़ता जा।

बदली – बदली दुनिया है,
राही बन कर चलता जा।

परिवर्तन गर लाना है
भावों को तू गढ़ता जा।

पीर प्रबल हो यदि मन में
आँसू जैसे झरता जा।

■संपर्क-
■94076 50458

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