■पर्यावरण दिवस पर विशेष बाल कविता : तारकनाथ चौधुरी.
♀ गोलू और दादाजी
जब गोलू बोला-
दादाजी इस बार हमें भी गाँव ले चलो।
बूढे़ बरगद बाबा की तुम छाँव ले चलो।।
देखेंगे हम होती कैसी वन की हरियाली।
यहाँ के आँगन सूने राह पेडो़ं से है खाली।।
अमुआ की डाली पर डालेंगे झूले।
खेल पुराने खेलेंगे जो हुए भूले।।
सुन पायेंगे मधुर तान पक्षी-दल के।
स्वाद चखेंगे तेंदू-चार जैसे फल के।।
गोलू की बातों को सुन हुए दादा चिंतित।
वर्तमान के सच से उनका मन था विचलित।।
कैसे कहें वो पेडो़ं के कटने की पीडा़।
चट कर गया सभी वन शहरीकरण का कीडा़।।
ताल-तलैये सूख गये और नदिया गुम है।
अपनी दीन-दशा पर पर्यावरण गुमसुम है।।
तभी योजना एक कौंध उठी बिजली सी।
लौटी चमक मुखडे़ पर दादा के पहली सी।।
एक पंथ और दो काज का चिंतन करते।
गोलू की पीठ पर धौल जमा मन ही मन हँसते।।
अनायास ही उठा लिए गोलू को गोद में।
लगे नाचने घूम-घूम दादाजी मोद में।।
बोले हम सब गाँव चलेंगे 5जून को ।
ले चलना तुम साथ शोनाई और तुतून को।।
पर्यावरण का पर्व वहीं मनायेंगे।
सूनी डगर पे पौध नये लगायेंगे।।
पर्यावरण-सुरक्षा नहीं है काम एक का।
ये पुनीत कर्तव्य तो साथी है समवेत का।।
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