■कविता आसपास : डॉ. मंजुला पांडे [नैनीताल-उत्तराखंड]●
♀ बारिश
बारिश आती है जब जब
भगा देती है
मेरे मन के आंगन के
सूनेपन को
महसूस करती हूं
अपने आप में
एक खुशबू , एक ताजगी
एक उमंग
कुछ नया
कर जाने की ललक
सूरज की तपन से तपे
अलसाये बदन की
चादर को उतार फेंकती हूं
सजाने लगती हूं
घर का कोना-कोना
रोपने लगती हूं
नए नए पौधे जमी पर
इस आशा के साथ
कि फूटेंगे अंकुर
कुछ ही दिनों में
झांकेंगे रंग-बिरंगे पुष्प
आ जाएगी बहार जीवन में
महक उठेगी बगिया
मेरे मन व आंगन की
उड़ेगी रंग बिरंगी
तितलियां उन पर
चहकने लगेंगे
पंछी भी उन्हें देखकर
दरअसल यह बारिश
करती है तृप्त
धरती के हर जीव को
रिमझिम करती इसकी बूंदे
कर देती है
नवजीवन का संचार
तन मन में
नाच उठता है मन मयूर
नाच उठती है धरा
देती है सीख यह बारिश
हम सभी को
लाना है स्वर्ग
यदि धरती पर
घोलनी होगी मिठास वाणी में
देनी होगी शीतलता
ठीक मेरी रिमझिम करती
बूंदों की तरह….।
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