■कविता आसपास : जयराम जय [ कानपुर, उत्तरप्रदेश ]
3 years ago
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♀ पिता
पिता दिवस क्यों लोग मनाते
हमको समझ न आया
सिर्फ पीटते ढ़ोल एक दिन
कैसी जग की माया
बिना पिता के एक दिवस भी
हम तो रह न पाते
करते हैं अनुकरण हमेशा
वह जो हमें बताते
सबसे पहले उनको ही तो
हमने है अपनाया
जब भी पड़ी मुसीबत कोई
छत से छाये रहते
अपने ताकतवर कंधों पर
बोझ उठाये रहते
कब क्या उचित हमें क्या करना
रोज़-रोज़ समझाया
बट वृक्षों सी छाया हर-पल
हमको देते रहे सदा वे
करते रहे पिटाई जमकर
अपनी यदा-कदा वे
हित में जैसी पड़ी जरूरत
वैसा कदम उठाया
हम जो कुछ हैं जैसे भी है
देन उन्हीं की यारो
उनकी ही मेहनत का फल हैं
सोचो और बिचारो
उनके सद्कर्मों को हरदम
गाते नहीं अघाया
पिता दिवस क्यों लोग मनाते
हमको समझ न आया
सिर्फ पीटते ढ़ोल एक दिन
कैसी जग की माया
■कवि संपर्क-
■94154 29104
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