■कविता : परमेश्वर वैष्णव [भिलाई-छत्तीसगढ़].
2 years ago
365
0
♀ मैं मानसून का बादल
कुछ तकरार,प्यार कुछ हिदायत, शिकायत है
आपसे मिली मुझे ,यही पूंजी मेरी बहुतायत है
मानता सुनता हूं तभी कहते आप मुझे मानसून
झूठे वादे करके तो बहलाती आपकी सियासत है
बरस बरस कर खुद को मिटाता हूँ मैं बार-बार
सबके लिए मोहब्बत बरसाना ही मेरी आदत है
न धर्म ,जाति ,सम्प्रदाय न कोई मजहब है मेरा
हरि- भरी रहे वसुंधरा मेरी धर्मनिरपेक्ष चाहत है
मैं फक्कड़ घुमक्कड़ ,नहीं मेरा कोई भी मुकाम
प्यासी धरती, वंचितों की चाहत मेरी विरासत है
कुछ दिन का मेहमान घूम रहा मैं बादल आसमान
वक्त के आगे किस काम का रुतबा,कैसी ताकत है
■परमेश्वर वैष्णव
[संगठन सचिव,छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ,छत्तीसगढ़. संपर्क-94255 57048]
●●● ●●● ●●●●