रचना आसपास : बलदाऊ राम साहू [दुर्ग छत्तीसगढ़ ]
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गोटी-माटी निमार के देख
जिनगी अपन सँवार के देख।
कब तक तैं गुंगवावत रहिबे
अंतस आगी बार के देख।
मन के गुलाझाँझरी ला तैं
थोरिक-थोरिक निमार के देख।
निरमल हो जाही अंतस हर
कहिथौं तैं हर बिचार के देख।
मुड़ मा जतका करजा हावय
थोरिक-थोरिक उतार के देख।
झोल बहुत हे ए जिनगी मा
आँखी अपन उघार के देख।
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