०कविता आसपास : विद्या गुप्ता.
हे प्रभु दो मुझे
मां बनने का वरदान
हंसे प्रभु
सुनो….!!मेरा कहना
सरल नहीं है इतना
मां बनाना ….!!
नौ माह तक बोझ कोख में
होगा सहना , देह यज्ञ में तपना होगा
मुझे मंजूर प्रभु…!!
सींचना होगा देकर
अपना लहू… अपना दूध
गवाना होगा अपना नूर
मुझे मंजूर प्रभु….!!
आंचल में…. मल मूत्र
थककर होना होगा चूर…..!!
कदम कदम पर चिंताएं
देना होगा मुंह का कौर
भूख प्यास सहना,
कभी तन भी रहन
रखना होगा
मुझे मंजूर प्रभु….!!
कभी-कभी चुभते भी हैं
कोख के फूल, जैसे शूल ….!!
ऐसा भी हो सकता है,
जिसे देह कक्ष में तुमने पाला
दे सकता है वह
मन की, घर की दुनिया से
तुम्हें निकाला…..!!
बस कीजिए प्रभु
मुझे सब है मंजूर
उसका होना ही, है मेरा होना
मैं ब्रह्मा बनू
अपनी नन्ही सृष्टि की
जैस पिता तुम अखिल समष्टि के
धन्य है मां तू और धीरज तेरा
तू ही कर सकती है इतना
मैं तो बस सौ तक ही
कर सकता हूं गणना…..!! फिर
सुदर्शन चक्र उठा लेता हूं और तू
क्षमा लिए खड़ी रहती है
०कवयित्री सम्पर्क-
०9617001222
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