होली विशेष : डॉ. दीक्षा चौबे
🌸 होली गीत
– डॉ. दीक्षा चौबे
[ दुर्ग छत्तीसगढ़ ]
मस्ती में निकले हुरियारे , सजकर आए टोली में ।
एक-दूजे को रंग डालें , आज परस्पर होली में ।।
अंबर सारा हुआ गुलाली , लाली मुखड़ों पर छाई ।
मंगल भावों से भीगा मन , समरसता जग में आई ।
दुश्मन दोस्त गले मिलते हैं , पनपा भाईचारा है ।
खुशियों की पिचकारी बरसीं ,चढ़ा प्रेम का पारा है ।
गुझिया लड्डू सेव मिठाई , भरें मधुरता बोली में ।।
मस्ती की लो भाँग घुल गई , झूम-झूम सब नाचे हैं ।
मुखरित मौन अधर की भाषा , नैनों ने ही बाँचे हैं ।
फागुन की मस्त बयारों ने , प्रेमिल मन उकसाया है ।
कोयल कूक उठी बागों में , सुना आम बौराया है ।
पियराई सरसों हठ करती , चलो बिठा दो डोली में ।।
द्वेष दंभ कलुषित भावों की , आज जला दो होली रे ।
कटुता बैर भुला दो सारे , बन जाओ हमजोली रे ।
प्रियता के रंगों में रँग दें , जग को पावन कर जाएँ ।
संस्कृतियों को आदर देकर ,खुशहाली हर घर लाएँ ।
लक्ष्मण रेखा पार न करना , देखो हँसी-ठिठोली में ।।
•डॉ.दीक्षा चौबे
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