रंगपंचमी विशेष : डॉ. रा. रामकुमार
🌸 एक फागुनी मधुमासी गीत
– डॉ. रा. रामकुमार
[ बालाघाट, मध्यप्रदेश ]
किसके अधरों की रंगत पलाशों पे है,
कोई कस्तूरी’-मृग क्या इधर से गया।
क्यों गुलाबी हवा में है मीठी चुभन,
दुष्ट कंदर्प क्या छेड़कर है गया?
फूल सरसों के, अंजुरी में मकरन्द ले,
आनेवाले को जैसे भिगाने खड़े।
बाग वन पथ पे फूलों की चादर बिछा
भूप ऋतुराज को हैं लिवाने खड़े।
पाहुना आ गया तो, वो भगदड़ मची,
कोई तन, कोई मन लूटकर ले गया।
आम्र रसराज बौरा के सुरभित हुए,
यह भी कुदरत का अद्भुत चमत्कार है।
जाते जाते भी फागुन सुफल दे गया,
यह बड़प्पन सुसभ्यों का व्यवहार है।
वर्ष के अंत में भी मिला घट भरा,
हर पथिक घूंट अमृत के भर के गया।
चैत्र की प्रतिपदा सांवली है तो क्या,
सात रंगों से हमने उसे रंग दिया।
इन्द्रधनुषों का यह पर्व हो वर्ष भर,
यूं लगे कोई अपनों के संग-संग जिया।
जो अंगूठी सगाई की पहना गया,
हाथ वो धर के हम सब के सर पे गया।
[ •डॉ.रा.रामकुमार महंत राजा दिग्विजय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय राजनांदगांव छत्तीसगढ़ से स्नातकोत्तर हैं. •’ सबेरा संकेत ‘ अखबार के संपादन विभाग में अल्पकालीन संपादन, देशबंधु, नवभारत, दैनिक भास्कर, अमृत संदेश में लेखन एवं आकाशवाणी में भी प्रसारण. •2018 से शासकीय सेवा से सेवानिवृत के बाद स्वतंत्र लेखन की ओर कदमताल. •’ छत्तीसगढ़ आसपास ‘ से नवप्रयाण का प्रयास.
•संपर्क – 98939 93403 ]
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