कविता आसपास : महेश राठौर ‘ मलय ‘
🌸 दो पायदान ऊपर
– महेश राठौर ‘ मलय ‘
उकता रहा था
बैठे-बैठे
दो घंटे लेट
ट्रेन की प्रतीक्षा में
रायपुर के
प्लेटफार्म पर।
दृष्टि पड़ी सहसा
कुछ व्यक्ति
निर्धन वर्ग के नितांत,
विवाह कर लौट रहे थे
लड़के का।
अति सस्ते
वैवाहिक परिधान में
आवृत्त
षोडषी साँवली दुल्हन
कुछेक गज की दूरी पर
आकर बैठी
उम्र की अल्हड़ मृगी को
संयत करने की
असफल चेष्टा करती
सकुच कर।
दे रही थी चुनौती
निर्धनता और अशिक्षा से
उपजी अज्ञानता
बिना परवाह के
विवाह की नियत उम्र की
वैधानिकता को
सरे-आम राजधानी के
सबसे बड़े
सार्वजनिक स्थल पर।
लगभग चार दशकों के बाद
देखा था
शादी का ऐसा नजारा।
जो भी हो,
मेरी दृष्टि केन्द्रित थी
दुल्हन के सहज लावण्य
और
उसकी उम्रजनित
चंचलता पर।
तभी . ..
उसने अपने पास रखे
पुराने अधफटे किंतु
साफ-सुथरे बैग से
निकाला
एक छोटा-सा टूटा आईना
और निहारकर
अपना रूप
मुस्करा उठी हौले-से।
मानो
मुस्कान की उस विह्वलता में
अंतर्विष्ट थीं
निज सौंदर्य-बोध की
आत्ममुग्धता और
मिलन की
सौ-सौ स्वप्न-लड़ियाँ।
आतुर था शृंगार
प्रकटित होने
अपने चरम पर।
सच मानिए –
क्षण-भर का वह रूप-दर्शन
सौ-सौ राजकुमारियों की
सुंदरता
निहार कर निहाल होने से
ऊपर था
और
नव सुहागिनों के लिए
वर्ज्य वह भग्न दर्पण
बेशकीमती रत्नों के
फ्रेम पर मंडित
दर्पणों से
दो पायदान ऊपर।
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