कविता : स्नेहा गोयल [रांची झारखंड]
🌸 माँ
माँ, शब्द में ही एक जादू है,
इसको बोलते ही सारी तकलीफ़ें पल में ग़ायब हो जाती है।
माँ, जन्म देकर मुझे ख़ुद का हिस्सा बनायी, मेरी एक ख़ुशी के लिए सारी कोशिशें कर आयी।
मुझे समय पर ख़ाना देती, पर ख़ुद नहीं खाया यह उन्हें याद नहीं रहती।
उनका हर कार्य नि:स्वार्थ है, और उनके स्वार्थ में भी मेरा ही स्वार्थ है।
हर दिन उसमें एक नया उत्साह है,
ज़िंदगी का जीना सिखाने का यह उनका कला है।
जब जब दुनिया ने मुझे आख़ दिखाया,
तब तब “मैं अपनी माँ को बता दूंगी” का वाक्य दिल को सुकून पहुंचाया।
और जब इसी दुनिया ने रुलाया,
तब माँ के आँचल ने मुझे चुप कराया।
माँ की आँखों की चमक, उनकी होठों की मुस्कान, उनके माथे की तीव्रता और उनकी गोद की छाँव में बन जाती है मेरी एक अलग ही दुनिया,
ऐसी दुनिया जो है सपनों से भी ज़्यादा रंगीन।
दूर होकर भी, हर सुख – दुःख में सबसे पास होती है माँ।
अब जब बड़ी हुई, तब जाकर समझ आया की कई दूजा ना है ऐसा ख़ूबसूरत जैसी है मेरी माँ।।
🟥🟥🟥