गीत : श्रीमती आशा झा [दुर्ग छत्तीसगढ़]
🌸 स्मृतियों के झरोखों से
स्मृतियों के झरोखों से मैंने देखा जो बीता कल ।
याद आने लगे मुझे अच्छे बुरे खट्टे मीठे पल ।
याद आने लगा मुझको मां का प्रेम से दुलारना ।
याद आने लगा मुझको मां का प्रेम से फटकारना ।
याद आने लगा मुझको मां का प्रेम से सिर पर हाथ रखना ।
बातों बातों में मुझसे सवाल जवाब करना ।
जिन्हें सुनकर मच जाती मेरे तन मन में हलचल ।
याद आने लगे मुझे अच्छे बुरे खट्टे मीठे पल ।
याद आने लगा मुझे सफल होने पर पिता का तारीफ करना ।
शाबाशी देते हुए मेरी पीठ पर हाथ रखना ।
शाबाशी पाकर मेरे मन का बल्लियों उछलना ।
घर आंगन में मटक मटक कर कूद कूद कर चलना ।
खुशियों से मन मेरा नाचे मचल मचल
याद आने लगे मुझे अच्छे बुरे खट्टे मीठे पल ।
याद आने लगा मुझे बहनों के साथ मचाना धमाल ।
याद आने लगा मुझे साथ मिलकर करना कमाल 1
संग संग सब जगह जाने पर जब मच जाता बवाल ।
पोल खोल देने पर मां से मारती मुझे खींचकर बाल ।
मन कहता उन क्षणों में फिर से तू उठ कर चल ।
याद आने लगे मुझे अच्छे बुरे खट्टे मीठे पल ।
याद आने लगा भाई के संग करना शरारते ।
साथ मिलकर माता-पिता से करना बगावते ।
ज्वर आने पर सिर पर उसके गीली पट्टी रखना ।
किसी के सताने पर मुझे मैं हूं ना उसका कहना ।
सुनते ही सुरक्षा की भावना को मिल जाता बल ।
याद आने लगे मुझे अच्छे बुरे खट्टे मीठे पल ।
याद आने लगा सखियों के संग यहां वहां फिरना ।
अपने ही शहर की गली-गली छानना
अंधेरा होने पर घर आते हुए डरना ।
एक दूसरे की अदाओं पर मरना ।
दोस्ती में कोई भी किसी से नहीं करता था छल ।
याद आने लगे मुझे अच्छे बुरे खट्टे मीठे पल ।
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