कविता आसपास : ओमवीर करन
🌸 उनसे शिकायत
– ओमवीर करन
[रिसाली सेक्टर, भिलाई, जिला – दुर्ग, छत्तीसगढ़]
किसी ने अच्छा और समझदार कहा मुझे,
मैं सच समझकर खो गया था
वो तो भला हो दुनिया का जिसने समझाया मुझे भरम हो गया था
किस से कहता और क्या कहता मैं
खामोशी और मुस्कुराहट के बीच फसा रहता मैं
मैंने वो फसल काटी है ताउम्र उसकी कसम
जो यादें वो मेरे जेहन में बो गया था ,
मुझे भरम हो गया था
उससे कॉल पे बात करना दिल्लगी नहीं जरूरत थी मेरी
पर उसके मन में कुछ और ही बात ठहरी
मैं असर जानना चाहता था उसका
जो हादसा उसके साथ हो गया था
मैंने उन यादों की फसल काटी जो वो बो गया था
सुख परिवार दुनिया सब अपने पास रखे वो
मैं तो चाहता हूं जिंदगी भर हंसे वो
क्या पता बातों से गम का पल निकल जाए
क्या पता बातों से कोई हल निकल जाए
हलो पलों की जद्दोजहद में अहम सो गया था।
मैंने उन यादों की फसल काटी जो वो बो गया था
उसके मजाक को भी गंभीरता से लेने की आदत रही है
सब खत्म हो गया है पर चाहत रही है
मेरी बातों को खुदा तू उस तक पहुंचा दे
अच्छे खासे मसले को वो मजाक न बना दे
उसे मालूम नहीं शायद, बिछड़े थे हम
तभी मजाक का दौर खत्म हो गया था
मैंने उन यादों की फसल काटी जो वो बो गया था
मैं कुछ और ही समझा मुझे कुछ और ही हो गया था
कुछ कर नहीं सकते कुछ हो नहीं सकता
पर हम दोनों के दरमियां रिश्ते की खाल जुड़ी है
उसकी रूह से मेरे रूह की नाल जुड़ी है
रिश्ता छुटा था उससे पर टूटा नहीं था
सराबोर था उससे मैं कभी रीता नहीं था
पार भी पाना नहीं था उससे सो
रिश्ता रूह का मुझे डूबो गया था
मुझे भरम हो गया था
मैंने उसकी यादों की वो फसल काटी जो वो बो गया था.
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