कविता आसपास : डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय [केंद्रीय विद्यालय, वेंकटगिरि, आंध्रप्रदेश]
🌸 सूरज
अंधेरे से परेशान सूरज
कल ही अपनी आभा खो
बेचैन भागता हुआ
थका-हारा चला गया था
संध्या के साथ शयन कक्ष में
चिंतन और रणनीति के लिए।
अरे! देखो-देखो
कल का निराश सूरज
नए संकल्प के साथ
अंधेरे से आर-पार करने
अपनी सहधर्मिणी उषा के साथ
केसरिया साफा बांधे
पहाड़ पर चढता
ललकार रहा अधेरे को
और बूढा अंधेरा
डरा- सहमा
निशा का हाथ थामे
थरथर कांपता
तेजी से उतर रहा
पर्वत की ढलान
जान बचाने
तेजस्वी सूरज और
उषा से.
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🌸 खिड़कियाँ
खिड़कियाँ
उम्र में छोटी हैं
दीवारों और दरवाज़ों से।
भय की कोख से
उत्पन्न हुई हैं
दीवारें और दरवाज़े
प्रकृति से जंग लड़ती हैं
दीवारें निरंतर।
दरवाज़े
अक्सर खुलते हैं
अंदर की ओर और
बाहर की दुनिया से
जुदा कर देते हैं हमें।
शुक्र है
खिड़कियों का
जोड़ा है हमें
बाहर की दुनिया से।
बाहर की ओर खुलती हैं
खिड़कियाँ
अपने साथ लाती हैं
हवा, पानी और प्रकाश
इसी रास्ते आते हैं
नए विचार चुपके- चुपके
बंद दरवाजों के बाद भी।
बहुत ज़रूरी है
एक अदद खिड़की
हर दीवार और दरवाजे में
ज़िन्दा रहने के लिए।
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