कविता आसपास : महेश राठौर ‘ मलय ‘
🌸 बहुत छेड़ती है
– महेश राठौर ‘ मलय ‘
{ जांजगीर छत्तीसगढ़ }
विदूषी
नववधू-सी
हो गई है प्रकृति.
नित नूतन
सृजन के लिए
उसके पास
विलक्षण
प्रतिभा है, कौशल है
और उत्कण्ठा भी.
लेकिन
मुक्त नहीं है वह.
जकड़ी हुई है
ओछी
मानवीय मानसिकतारूपी
क्रूर, निर्मम सास की
बेड़ियों में.
कहाँ करने देती है
सास दुष्टा
कभी उसे मन का?
बहू
जब भी किंचित
मुक्त महसूस करती है,
पनप उठती है.
उभार ही देती है
अपनी दक्षता
कांतारों, गिरि-गह्वरों,
पुष्करों, सलिलाओं और
प्राची के काँचन-पट पर.
देखकर
उसकी मुस्कान,
उसकी निपुणता, उसका चातुर्य
जल-भुन उठती है
उसकी खलनायिका सास.
आमादा रहती है
ध्वस्त करने में
बहू की सारी कलाएँ.
जहरीली बनाती रहती है
वधूटी की साँसें,
उसके शुभानन को मलीन,
उसकी देह की
जादुई सुषमा को विकृत.
कितनी बदमाश है
आदमी की निकृष्ट सोच
और मतलबपरस्ती की
पर्याय
ये घटिया सास.
बहुत छेड़ती है बहू को
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