नवरात्रि पर विशेष, कहना है कुछ…बस यूं ही…! -आलोक शर्मा
4 years ago
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कहना है कुछ…बस यूं ही..!
हे जगत जननी
हे आदिशक्ति
हे मां
विदा हो रही हो तुम
मां तो जीवन है
मां कैसे विदा होगी!
मां तुम्हारे श्रृंगार से
हम सजते रहे हैं
मां तुम्हारी आभा से
हमारे उजाले रहे हैं
मां तुम्हारी तेज से
शत्रु निस्तेज रहे हैं
हे मां,तू अंतस में है
तू हर हर की जस में है
हे मां,हम तेरी आंचल तले हैं
तू कैसे विदा होगी
मां तू जननी है
हम तेरे सृजन हैं
तू हमसे कैसे विदा होगी
विसर्जन जीवन का निष्ठुर नियम है
इसलिए जाओ मां
मगर मेरे विव्हल नयनों से
तुम ओझल मत होना
मैं जगत मेलों में विचर रहा हूं
ऊंगली को कसी मुट्ठी मत खोना
जाओ मां
फिर आना
और.. आशीष देते जाना
आपदा से सब मुक्ति पाएं
तेरे बेटे रोजगार देख पाएं
तेरी बेटियां निर्भय पल जी पाएं
घर घर में पिता आकाश भर लाएं
और मांए सुख का आंचल कर पाएं
जाओ मां
सजल करुणा से विदा तुमको…!”
chhattisgarhaaspaas
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