छत्तीसगढ़ी कविता : दुर्गा प्रसाद पारकर [छत्तीसगढ़ भिलाई]
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▪️ रिटायर्ड कर्मचारी
लइका
छोटे ले बड़े होथे ,
बड़े हो के
अपन पाँव म खड़ा होथे |
बड़े- बड़े सपना के संग
गृहस्थ आश्रम म प्रवेश करथे ,
जीनगी भर
लोग लइका के जिम्मेदारी म
कब रिटायर होथे
पता नइ चले |
देखते – देखत
रिटायर के बाद
मिले रूपया ह सिरा जथे ,
रूपया सिराय के बाद
सबो सपना सिरा जथे |
रिटायर के बाद
सबके नजरिया बदल जथे ,
दुकान वाले मन
उधारी नइ देवय
उमन रिटायर आदमी ए कथे |
घर म
नाती नतरा खेलावत
बेरा कटथे ,
गोसइन ह
एक्सपाइरी डेट के दवई कस
व्यवहार करथे |
रिटायर के बाद
सुने के आलावा
कोनो चारा नइ हे ,
रिटायर के बाद
मया म बंधइया
कोनो सिमेंट अउ गारा नइहे |
•संपर्क –
•79995 16642
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