रचना आसपास : गोविंद पाल
▪️ गज़ल
जबसे अंधेरे से अंधेरों का गठबंधन हो गया,
चोर, लुटेरे, बदमाशों का अभिनंदन हो गया।
किसके भरोसे समंदर की थपेड़ों से लड़े कश्ती,
साहिलों के साथ जो उसका अनबन हो गया।
सारा दिमाग और ताकत सच छुपाने में लगा दिया,
लोगों का भला करने कुछ बचा नहीं ठन- ठन हो गया।
जीवन भर जद्दोजहद करते रहे सिर्फ खुद के लिए,
अब जाकर कह रहे रिश्तों में कैसे अनबन हो गया?
साहित्य के मैराथन में जीवन भर भागते रहे गोविंद,
आखरी पड़ाव पर आकर ये कैसे बंधन हो गया?
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▪️ हिंदी हो हिंद में
हिन्दी में हम जीते हैं,
हिन्दी में खाते पीते है।
हिंदी हमारी नीति है,
हिन्दी अपनी संस्कृति है।
जगी दिल में एक आशा,
हिन्दी बनेगी राष्ट्रभाषा।
हिन्दी में कृषि विज्ञान होता,
किसान खुशहाली में जीता।
हिन्दी का अपमान कराया,
अंग्रेजी को सर पे चढ़ाया।
हिन्दी को गरीब ही पाया ,
अंग्रेजी को अमीर बनाया।
अभी भी न समझे अगर,
भटकेगी पीढ़ी का डगर।
हिन्दी हो मुख्य धारा हिंद में,
सिर्फ यही भाव है गोविंद में।
[ •बाल कवि के रूप में विख्यात गोविंद पाल विगत 40 वर्षों से लेखन में सक्रिय हैं. •’मुक्तकंठ साहित्य समिति ‘ के अध्यक्ष गोविंद पाल ‘ छत्तीसगढ़ आसपास ‘ संपादकीय ग्रुप के निदेशक व सलाहकार हैं. •संपर्क : 75871 68903]
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