कविता आसपास : रामनाथ साहू
एक लघु प्रेम कविता
– रामनाथ साहू
[ देवरघटा डभरा, जिला – सक्ति, छत्तीसगढ़ ]
आदमकद आईने में कभी अपनी तस्वीर देखी है? सारी कायनात दिखती है यहां अपनी संपूर्णता से।
लाख-लाख नदियों का आवेग, उनमें उफनती धाराओं का वेग, सब के सब उछली जा रही हैं यहाँ। दरअसल यह नदियां भी, कहां जाती हैं, कहां से आती हैं? यह नामालूम है। पर यह जाती हैं आती हैं यह दिखती हैं महसूस होती हैं।खैर यह नदियां तो आखिर नदियां ही हैं न।
सुमेरु पर्वतों की श्रृंखला ही खड़ी हो गई है। इन पर्वतों पर पर्वतारोहण करते कितने फना हो गए। यह गणित से इतर की चीज है। पर ये सुमेरु खड़े हैं सो खड़े हैं।
कदली वन में कदली स्तम्भों की अपनी अलग ठाठ है। स्नेह में डूबे स्नेहसिक्त इन स्तम्भों का परस ही कभी अनुष्ठान बन जाता है।यह परस विश्वामित्र का अनुशासन भी भंग कर जाता है।
श्रृंग हैं तो गर्त भी हैं। इन गर्तों का थाह लेना मुमकिन नहीं है। जो थाह लेने चले थे वह आज तक नहीं लौटे हैं।
इस उधेड़बुन में दिखते दो हैं प्रकाश स्तंभ।और अंधेरे को चीरती हुई रोशनी की फाँके राह को रोशन कर जाती हैं।
आदमकद आईने में कभी अपनी तस्वीर देखी है? सारी कायनात दिखती है यहां अपनी संपूर्णता से।
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